Book Title: Dharmratna Prakaran Part 02
Author(s): Shantisuri, Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 331
________________ ३२२ असम्बद्धता पर देखा । अब उसने भी एकाएक बहिन को आई देख, विस्मित हो उचित सत्कार करके उसका सकल वृत्तान्त पूछा । तब उसने सब कह सुनाया और कहा कि-राजा उद्यान में हैं। तब नरसुन्दर राजा शीघ्र ही बड़ी धूमधाम से उसके सन्मुख रवाना हुआ। इधर अवंतिनाथ अति तीक्ष्ण भूख से पीड़ित होकर चीभड़ा खाने के लिये एक चीभड़े के बाड़े में चोर के समान पीछे के दरवाजे से घुसा, तो उस बाड़े के स्वामी ने उसे मूठ और लाठी से मर्म-प्रदेश में मारा। तब वह तीव्र प्रहार से घायल होकर वहां से झट भागता हुआ भूमि पर काष्ठ के पुतले के समान निश्चेष्ट होकर गिर पड़ा। इधर नरसुन्दर राजा भी अपने विजय-रथ पर आरूढ़ होकर बहनोई के सन्मुख उक्त स्थान पर आ पहुँचा, किन्तु तरल घोड़ों के तीव्र खुरों से उड़ी हुई धूल के कारण उस समय आकाश में मानों घना अंधकार छाया हो, वैसा दिखाव हो गया । तब कुछ भी न दीखने से राजा के रथ के पहिये की तीक्ष्ण धार से मार्ग में (अचेत) पड़े हुए अवन्तिनाथ का सिर कट कर धड़ से अलग हो गया। अब नरसुन्दर राजा ने पूर्वोक्त उद्यान में अवन्तिनाथ को न देखकर संभ्रांत हो, यह वृत्तांत अपनी बहिन को कहला भेजा। तब हा दैव ! हा दैव ! यह क्या हुआ, यह सोचकर संभ्रम से आंखें फिराती हुई बंधुमति भाई की वाणी सुनकर वहां आकर गुमा हुआ रत्न देखा जाता है, उस तरह बारीक दृष्टि से देखने लगी, तो उक्त अवस्था को पहुंचा हुआ अपना पति उसने देखा, परन्तु वह उसे मरा हुआ देखकर मानो मुद्गल से आहत हुई हो उस भांति तुरंत मूर्छा से आंखे बन्द कर भूमि पर गिर पड़ी। वह

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