________________
३०८
मध्यस्थता पर
इस भांति दोनों समान है । तथापि केवल आकार याने आ' वर्ण का भेद दृष्टिगत होता है ऐसी आमलकल्पा नामक नगरी थी। वहां पवित्र चरित्रवान्, संशयरूप पर्वत की सैकड़ों चोटियां तोड़ने में अति कठिन वन्न समान श्री वीरप्रभु एक समय पधारे ।
तब वहां देवों ने विधि के अनुसार तीनों गढ़ से शोभायमान समवसरण की रचना की । जो कि मानो भावशत्रुओं से पीडित त्रैलोक्य के रक्षण के हेतु,दुर्ग बनाया हो. ऐसा भास होता था। वहां पूर्व दिशा से भगवान प्रवेश करके "नमो तित्थस्स" बोलते हुए सिंहासन पर बैठकर इस प्रकार देशना देने लगे
प्रचंड पवन से हिलते दर्भ की नोक पर स्थित पानी के बिन्दु समान आयुष्य चपल है । पर्वत में बहती नदी के पानी के प्रवाह समान स्वजन सम्बन्धी है। सांझ के बादलों के रंग समान जीवों की तरुणावस्था है और मदोन्मत्त हाथी के बच्चों के कान समान धन दौलत अस्थिर है। इस प्रकार सकल वस्तुओं को क्षणिक सोचकर हे भव्यों ! अक्षणिक सुखकारी धर्म में यत्न करो। __इसी समय सूर्य के समान विमान की कांति से दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ कोई देवता आकर धर्म-कथा पूरी हो जाने पर कहने लगा कि-हे स्वामिन् ! आप तो संपूर्ण केवलज्ञान से सब कुछ जानते ही हो, तो भी गौतमादिक मुनियों को मैं अपना नाटक बताऊ । पश्चात् पुनः वह भगवान को प्रणाम करने की आज्ञा लेने लगा। तब जगत् रक्षक भगवान ने कहा कि-यह तेरा कृत्य है और जीत है । इसके अनन्तर वह देव हर्षित होकर अपने स्थान को गया। ___ अब गौतम गणधर जिनेश्वर को प्रणाम करके पूछने लगे कि यह कौन देवता है, और इसने पूर्व में क्या सुकृत किया ? स्वामी