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प्रदेशी राजा की कथा
बोले कि - पहिले देवलोक में सूर्याभ नामक विमान का यह सूर्याभदेव है । इसने पूर्वभव में यह सुकृत किया है ।
जैसे विष्णु की मूर्ति श्री परिकलित, रामाभिनंदिनी (बलराम से शोभायमान) और गदान्वित ( गदा अयुध सहित) होती है । वैसे ही श्री परिकलित ( आबाद ) रामाभिनंदिनी (रमती स्त्रियों से शोभायमान), तथापि गद रहित ( रोग रहित ) श्वेतविका नाम नगरी थी ।
वहां दुश्मनों को देश प्रवास कराने वाला प्रदेशी नामक चार्वाक मत में चतुर राजा था । उसकी लावण्य से रम्यरूपवाली सूर्यकान्ता नामक सत्कान्ता थी और अपने तेज से सूर्य को जीतने वाला सूर्यकान्त नामक पुत्र था । तथा अपनी बुद्धि से बृहस्पति को जीतने वाला चित्र नामक उसका मंत्री था। वह राजा के मन रूपी मानस में राजहंस के समान सदैव बसता था । उसको राजा ने एक समय भेट देकर श्रावस्तीपुरी में जितशत्रु राजा के पास राजकार्य साधने के हेतु भेजा ।
वहाँ वह भेट देकर सब काम शीघ्र ही कर लेता था क्योंकिबुद्धिमान पुरुष शीघ्र विधायी (जल्दी काम करने वाले) होते हैं । वहां उद्यान में चित्र मंत्री ने उज्वल चरित्रवान, चौदहपूर्वधारी, चतुज्ञांनी पार्श्वनाथ के संतानीय (केशिकुमार को देखे ) ।
पांच आचार के विचार प्रपंचरूप सिंह के रहने के वन समान दुर्मथ मन्मथ के मथने वाले, शिव-पथ के रथ समान, निर्मल गुणयुक्त, यति की श्र ेणी से परिवारित, केशि नामक प्रथित हुए कुमार श्रमण आचार्य को देखकर, नमन करके इस भांति धर्म श्रवण करने लगा
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