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चंद्रोदर नृप चरित्र
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अब वह हाथी क्षण में भूमि पर और क्षण में आकाश में दीखता हुआ कुमार को अपहरण करके थोड़ी ही देर में अदृश्य हो गया । यह देख राजा वज्रायुध ने शीघ्र ही चतुरंग सेना के साथ कुमार का पीछा किया । किन्तु वायु के वेग से हाथी के पदचिन्ह मिट जाने से राजा लौटकर अपने घर को आ किसी प्रकार दिन बिताने लगा |
अब उस हाथी ने कुमार को वैताढ्य पर्वत पर ले जाकर इन्द्रपुर के अधिपति पद्मोत्तर राजा के पास पटका । तब उसने अति संभ्रम से उसे उचित आसन पर बैठाकर स्नेह भरी वाणी से इस प्रकार कहा
हे कुमार ! सत्यवान् सात पुत्रों पर जन्मी हुई भारी रूपवती शशीलेखा नामक मेरी पुत्री है। उसको यौवन प्राप्त देखकर कल मैंने ज्योतिषी को पूछा कि इस कन्या का वर कौन होगा ? सो कह ।
उसने कहा कि- चक्रपुर के राजा चक्रायुध का पुत्र चन्द्रोदर तेरी पुत्री का योग्य वर है । तथा उसने कहा कि- आगामी कल ही को उत्तम लग्न है । तदनन्तर मैंने उक्त ज्योतिषी को सत्कार सन्मान देकर बिदा किया । अब इस हाथी रूपधारी विद्याघर के द्वारा तुझे यहां मंगाया है। इसलिये हे सुप्रसिद्ध गुणवान राजकुमार ! तू विजयी हो और हमारी इस पुत्री का पाणिग्रहण करके हमको निश्चित कर । इस भांति राजा के प्रार्थना करने से कुमार ने शशीलेखा से विवाह किया
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तब राजा ने उसे आकाश गमन आदि विद्याएं दी । अब वह वहां आनन्द मंगल से इच्छानुसार रहने लगा ।
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