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दानादि चतुर्विध धर्म करने पर
रोपम होता है । वह दो बार विजयविमान में जाता है अथवा तीन बार अच्युत देवलोक में जाकर तीन ज्ञान सहित मनुष्यत्य में जन्मे तब होता है और सर्व जीव को अपेक्षा से सर्व काल है। ___ अवधिज्ञान के अनुगामिक आदि अनेक भेद हैं । वे निश्चय से प्रत्यक्ष और रूपिद्रव्य विषयी हैं । ये तीनों सम्यकदृष्टि जीव को होवे, तब ज्ञान गिने जाते हैं । मति और श्रत तो सदैव साथ ही होते हैं । अवधिज्ञान साथ में भी होता है, और बाद में भी होता है।
ये तीन ज्ञान पर्याप्तसंज्ञि पंचेन्द्रिय को होते हैं । तथा परभव का आया हुआ अवधिज्ञान अपर्याप्तसंज्ञि में भी माना जाता है। ये तीनों ज्ञान मिथ्यादृष्टि को अज्ञान रूप में होते हैं क्योंकि वहां ज्ञान का फल नहीं होता । साथ ही उनका ज्ञान विपरीत होता है।
परमावधि अंतर्मुहूर्त होता है । लोक प्रमाण अवधि अप्रतिपाति माना जाता है । अप्रमत्त यति को मन विषयक ज्ञान होता है, वह मनःपर्यव ज्ञान है । वह ज्ञान दो प्रकार का है। ऋजुमति मनःपयेव ज्ञानी अढ़ाई अंगुल कम समयक्षे त्र देखता है, और विपुलमति संपूर्ण समय क्षेत्र देखता है । मनःपर्यवज्ञान जघन्य से अंतर्मुहूर्त प्रमाण होता है और उत्कृष्ट देश-कम पूर्व कोटि होता है। जिन के सिवाय किसी-किसी को कभी-कभी अवधिज्ञान के बिना भी मनःपर्यव होता है।
अत केवली, आहारक, ऋजुमति और उपशम श्रेणी वाले जीव पड़े तो पुनः अनंत भव भमते हैं और विपुलमति अप्रतिपाती है।
केवलज्ञान सर्वद्रव्य तथा सर्व पर्याय विषयक होता है। वह अनंत शाश्वत और असहाय (स्वतंत्र) होता है । उनके दो भेद हैं: