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दानादि चतुर्विध धर्म करने पर
होकर क्षण भर में स्वस्थ हो गये। पश्चात् उसने अपने मुख्य मनुष्यों को शीघ्र ही सचिव पद पर नियत किये और पश्चात् वह तीन वर्ग के साधन के साथ राज्य का पालन करने लगा। .
अब वहां एक समय भानुसूरि अनेक शिष्यों के साथ पधारे। उनको नमन करने के लिये परिवार सहित राजा वहां आया । वह गुरु को वदना करके उचित स्थान में बैठा तो गुरु दु'दुभि समान उच्च शब्द से निम्नांकित धर्म समझाने लगे- यहां दान, शील, तप और भावनाओं से चार प्रकार का धर्म कहा है। वह चतुर्गति भवभ्रमणरूप गहन वन को नाश करने में अग्नि समान है।
दान तीन प्रकार का है:-ज्ञानदान, अभयदान और धर्मोपग्रहदान।
ज्ञानदान यह है:-जीव अजीव आदि पदार्थ तथा आलोक तथा परलोक के कर्तव्य जिससे जीव जान सके सो ज्ञान है । वह पांच प्रकार का है । आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रु तज्ञान, अवधिज्ञान मनःपर्यव ज्ञान और पांचवां केवलज्ञान । मतिज्ञान के अट्ठावीस भेद हैं:-उनमें अवग्रहादि चार भेद हैं अवग्रह के दो भेद हैं। मन और चक्षु के अतिरिक्त शेष इंद्रियों से चार प्रकार का व्यंजनावग्रह है। कारण कि-मन और चक्षु अप्राप्तकारी होने से पुद्गल को पकड़ नहीं सकते। ___ अर्थ का परिच्छेद करने वाला सो अर्थावग्रह है, वह पांच इंद्रियों और मन द्वारा छः प्रकार का है। इसी भांति अपाय और धारणा ये भी प्रत्येक छः प्रकार के हैं। उनमें धारणा का उत्कृष्ट काल असंख्याता और संख्याता है । अर्थावग्रह का एक समय है और शेष का उत्कृष्ट तथा जघन्य अंतमुहूर्त हो है।