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दानादि चतुर्विध धर्म करने पर
एक दिन वह सुखपूर्वक वासगृह में सोया था । इतने में मध्यरात्रि में किसी मनुष्य ने उसे आकाश मार्ग से हरण किया । वह उसे थोड़े ही मार्ग में लाया होगा कि इतने में वह जागकर अत्यन्त क्रोधित हो मुष्टिका उठाने लगा तब उस मनुष्य ने उसे
इस प्रकार कहा
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स्वामिन् ! कोपमत कर, और कृपा कर मेरा यह वचन सुन । वैतान्य में मलयपुर नगर में किरणवेग नामक राजा था । वह सहसा कठिन शूल रोग होने से बहुत से उपचार करने पर भी पुत्रविहीन मर गया । तब वहां हाहाकार का महान् शोर मच गया और आक्रंद के शब्द के साथ भयानक प्रलाप के शब्द सुनाई पड़ने लगे। वहां मंत्रिमंडल बुद्धिमान् होते भी बहुत संभ्रान्त हो गया और सामन्त वर्ग भी किंकर्तव्यविमूढ बन गये
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तब नागरिक जन उस समय उत्पन्न हुए भारी भय से डरते हुए अशरण होकर इधर उधर देखने लगे तथा शून्य मन वा शून्य मुख हो गये । वृद्धवणिक हाथ पैरों से धूजते हुए अनेक संकल्प विकल्प करके गुपचुप सलाह करने लगे। गांधी अपने पसारे को कम करने लगे । बजाज अपनी दूकान में के कपड़ों के ढेर समेटने लगे ।
सुनार के लड़के लटकता रखा हुआ सोना चांदी उतार कर छिपाने लगा । कसारे कांसे के चोर फैलने लगे । जिससे बाजारों में ताले लगाये गये। गंठिछोड़ दौड़ने लगे जिससे पोटलिये दौड़ा दौड़ करने लगे । भय और जल्दी के कारण विह्वल हुए, तथा उडते, पड़ते, यंत्रों से टूटते जरावान वृद्ध वणिकों को तरुण लोग उठाकर दौड़ने लगे ।