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चंद्रोदर नृप चरित्र
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हाथियों का झुड सजाया गया । उत्तम तुर्की घोड़े कसे गये और श्रेष्ठ रथ तैयार किये गये और अच्छे-अच्छे सुभटों को कवच पहिराये गये । पूर्व में जीते हुए लाखों दुश्मनों से दर्प पर चढ़े हुए भाट, चारण, प्रशंसा करने लगे और कायर हंसने लगे। विजय डंका बजने लगा, युद्ध के बाजे बजने लगे और भुवन को भनकार से भरती हुई भेरियां बजाई गई।
सुभट हाथ में तलवारे ले-ले कर हांकते व कूदते हुए उठते हैं, कायर तलवार की खटाखट से डर कर भागते हैं । डरपोक हाथी उन पर पड़ती हुई सख्त गोलियों से, ध्वज के रूप में बांधे हुए मुख वस्त्र से अपने कुभस्थलों को ढांकते हुए वृक्षों को तोड़कर भागते हैं । कोट के दरवाजे मजबूत किवाड़ों से बन्द किये जाते हैं और किले पर चारों ओर लाखों यत्र चढाये जाते हैं।
इस प्रकार हे देव ! मलयापुर में गड़बड़ मच रही थी। इतने में संभ्रम से अस्थिर नेत्र वाले राज्य प्रधान पुरुषों द्वारा भक्ति से आराधी हुई कुलदेवी ने हे स्वामिन् ! आप महान् पुण्यशाली और पराक्रमी को राजा बनाने की सूचना की है। जिससे हे स्वामिन् ! मैं ने आपको हरण किया है । अतः शीघ्र ही वहां पधारने की कृपा करो और इन लोगों को तथा इस राज्य को सनाथ करिये ।
इस प्रकार भक्ति से कह कर वह उसे क्षण भर में वहां ले आया, तब प्रधान पुरुषों ने प्रसन्न होकर उसको राज्याभिषेक किया।
उसके राजा होने पर धूर्त भागने लगे, चोर डरकर छिपने लगे। गांठिछोड़ पकड़े गये, कानतोड़े मारे गये। तथा हाथी, घोड़े, रथ और पैदल, तया सामंत, मंत्री और सुभट सब प्रसन्न