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चंद्रोदर नृप चरित्र
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__उन अट्ठावीस भेदों को, बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिश्रित, निश्चित
और ध्र व ये छः प्रकार तथा इन छः के प्रतिपक्षी छः प्रकार मिलकर बारह प्रकार से गिनते तीन सौ छत्तीस भेद होते हैं।
भिन्न भिन्न जाति के भिन्न भिन्न शब्दों को पृथक-पृथक पहिचानना सो बहु है । उन प्रत्येक के पुनः स्निग्ध, मधुरादिक अनेक भेद जानना सो बहुविध है। उनको शीघ्र अपने रूप से पहिचानना सो क्षिप्र है। लिंग बिना ही जानना अनिश्रित है । संशय बिना जानना निश्चित है। किसी समय नहीं किन्तु अत्यन्त सदा जानना ध्रुव है।
मतिज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति एक जीव के हिसाब से छासठ सागरोपम है। इतने ही काल के प्रमाण वाला श्रु तज्ञान है। उसके १४ भेद हैं:-अक्षर, संज्ञि, सम्यक, सादि, सपर्यवसित, गमिक, और अंगप्रविष्ट । ये सात भेद और उनके प्रतिपक्षी सात भेद।
सम्यक्त्व परिगृहीत सो सम्यक्च त है । लौकिक सी मिथ्याभत है, तथापि श्रोता की अपेक्षा से लौकिक और लोकोत्तर में सम्यक् और मिथ्यात्व की भजना है। ___ अवधिज्ञान दो प्रकार का है-भवप्रत्ययिक और गुणप्रत्ययिक । नारक देवों को भवप्रत्ययिक अवधि है। उत्कृष्टपन से तैतीस सागरोपम और जघन्य से दस हजार वर्ष अवधि का काल है। उसमें अनुगामी याने भवांतर में साथ चलता हुआ अवधिझान और अप्रतिपाति अवधिज्ञान जन्म पर्यंत रहे।
गुणप्रत्यय अवधि दो प्रकार का है:-तियंचों का और मनुष्यों का । वह जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट बासठ साग