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________________ चंद्रोदर नृप चरित्र २८१ OR अब वह हाथी क्षण में भूमि पर और क्षण में आकाश में दीखता हुआ कुमार को अपहरण करके थोड़ी ही देर में अदृश्य हो गया । यह देख राजा वज्रायुध ने शीघ्र ही चतुरंग सेना के साथ कुमार का पीछा किया । किन्तु वायु के वेग से हाथी के पदचिन्ह मिट जाने से राजा लौटकर अपने घर को आ किसी प्रकार दिन बिताने लगा | अब उस हाथी ने कुमार को वैताढ्य पर्वत पर ले जाकर इन्द्रपुर के अधिपति पद्मोत्तर राजा के पास पटका । तब उसने अति संभ्रम से उसे उचित आसन पर बैठाकर स्नेह भरी वाणी से इस प्रकार कहा हे कुमार ! सत्यवान् सात पुत्रों पर जन्मी हुई भारी रूपवती शशीलेखा नामक मेरी पुत्री है। उसको यौवन प्राप्त देखकर कल मैंने ज्योतिषी को पूछा कि इस कन्या का वर कौन होगा ? सो कह । उसने कहा कि- चक्रपुर के राजा चक्रायुध का पुत्र चन्द्रोदर तेरी पुत्री का योग्य वर है । तथा उसने कहा कि- आगामी कल ही को उत्तम लग्न है । तदनन्तर मैंने उक्त ज्योतिषी को सत्कार सन्मान देकर बिदा किया । अब इस हाथी रूपधारी विद्याघर के द्वारा तुझे यहां मंगाया है। इसलिये हे सुप्रसिद्ध गुणवान राजकुमार ! तू विजयी हो और हमारी इस पुत्री का पाणिग्रहण करके हमको निश्चित कर । इस भांति राजा के प्रार्थना करने से कुमार ने शशीलेखा से विवाह किया 1 तब राजा ने उसे आकाश गमन आदि विद्याएं दी । अब वह वहां आनन्द मंगल से इच्छानुसार रहने लगा । •
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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