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________________ २८० यथाशक्ति दान पर समान वनायुध नामक राजा था। अपने सुन्दर रूप से अमर सुन्दरियों को जीतने वाली सुन्दरी नामक उसकी स्त्री थी और अपनी कांति से सुवर्ण को जीतने वाला चन्द्रोदर नामक उसका पुत्र था । वह राजा एक समय राजेश्वर-कुमार और सुभटों से खचाखच भरे हुए स्थान में बैठा था । इतने में छड़ीदार ने आकर इस प्रकार कहा किः हे देव ! आज यहां कौन जाने कहां से एक विशाल शरीर वाला जंगली हाथी आया है । वह प्रलयकाल के मेघ की गंभीर गर्जना के समान शब्द से समस्त दिशाओं के अंत भर डालता है । उसके गंडस्थल रूप झरने से मदजल झरता है । जिससे उठते हुए व पुनः बैठते हुए भंवरों से छाया हुआ वह बाजार व घरों को तोड़ रहा है । वह हाथी महावत को न मानते और संरक्षकों को लेश मात्र भी न गिनते अकाल में कोपे हुए काल के समान नगरजनों को त्रास देने लगा। ___ तब राजा खिन्न होकर बड़े-बड़े सुभट व सामंतो की ओर देखने लगा किन्तु वे भी सूर्योदय के बाद ग्रहों के समान क्षीण कांतिवाले हो गये तब चन्द्रोदर कुमार किसी प्रकार राजा की आज्ञा लेकर उस हाथा के पास आया। सब लोग विस्मित होकर उसे देखने लगे। ___ कुमार को सामने आता देख हाथी रुष्ट होकर साक्षात् यम के समान झपटता हुआ कुमार के सन्मुख आया। तब उसे खेलाने का कौतुक करने के लिये राजकुमार ने अपना उत्तरीय वस्त्र कुडल के आकार में फैक्रा । तब हाथी ने भी वह वस्त्र लेकर आकाश में उछाला । इतने में चालाकी से कुमार उसकी पीठ पर चढ़ बैठा।
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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