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आगमानुसारी क्रिया करने पर
स्त्री थी, और उल्लसित विनयादि गुणरूप पानी के कलश समान सुलस नामक पुत्र था !
अब भवचक्र नामक नगर में चक्रवर्ती और इन्द्रों के बल को तोड़ने वाला तथा घने अज्ञान का खास स्थान मोह नामक राजा था। वह एक समय सभा में बैठा हुआ सहसा चिन्ता निमग्न हो गया । तब रागकेसरी विस्मित होकर बोला कि-हे तात ! यह क्या है ? आपके कुपित होने से यह विद्याशप्त विद्याधरी के समान त्रिलोक (दुनियां) चिंता से गर्त में पड़ती है। तो भी समस्त शत्रुओं के बल को तोड़ने वाले आप स्वयं चिन्ता धारण करते हो । यह मुझे बड़ा आश्चर्य होता है । ___तब मोह बोला कि-हे वत्स ! चारित्र धर्म नामक मेरा सदा का शत्रु है । वह निरंकुश, कुछ सदागम के सहारे से चिढ़ गया है। राग बोला कि- आपने अभी इस असाधु के साथ क्यों छेड़छाड़ की ? मोह बोला कि- हे वत्स ! अभी हमने तो कोई छेड़छाड़ नहीं की किन्तु वही करने वाला है। ___भोगपुर में सदागम ही के वचन में रुचि रखने वाला और पवित्र वरुण नामक इभ्य है । उसका प्रज्ञाविज्ञानवान सुलस नामक पुत्र है । उसे जो सदागम अपने मत में कर लेगा तो वह निश्चय अपने कांदे निकालेगा।
राग बोला कि- चिन्ता नहीं, मैं अब शीघ्र ही मेरे कुदृष्टि राग नामक रूप द्वारा उसे पकड़कर आपके वश में रखूगा।
मोह प्रसन्न होकर बोला कि-ठीक कहा। साधु के समान तेरा कल्याण हो और यह द्वषगजेन्द्र तुझे मार्ग में सहायक हो । इस भांति पिता के कहने से वे दोनों सुलस के पास गये । उस