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वरुण का दृष्टांत
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उसी समय वहां धर्मवसु नामक मुनिराज का आगमन हुआ। तब सेठ जाकर प्रणाम कर शास्त्रोक्त विधी से यथास्थान पर बैठा । तब उक्त सूरिजी निम्नाङ्कित देशना देने लगे___यह जीव अव्यवहार राशि में अनन्त पुद्गल परावर्त व्यतीत करके जैसे-तैसे व्यवहार राशि में आता है । बादरनिगोद, पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय और वायुकाय में सत्तर (७०) कोटाकोटि सागरोपम उत्कृष्ट कायस्थिति काल है । इन पांच सूक्ष्मों में असंख्यात लोकाकाश के प्रदेश बराबर अवसर्पिणियां जाती हैं । साधारण बादर वनस्पतिकाय में अंगुल के असंख्यात भाग प्रमाण अवसर्पिणियां जाती है। ___एकेन्द्रियत्व में आवली के असंख्यातभाग समान पुद्गल परावर्त रहता है और उसमें सामान्य वनस्पति रूप निगोद में साढ़े तीन पुद्गल परावर्ग व्यतीत करता है । गर्भजपंचेन्द्रिय पुरुष वेद में दोसो से नौसो सागरोपम तक रहे और स्त्री वेद में एक सौ दस पल्योपम से अधिक रहे । पंचेन्द्रियत्व में एक हजार सागरोपम से अधिक रहे, नरक और देवता में एक ही भव करे । त्रसत्व में दो सागरोपम और नौ करोड़ पूर्व रहे। मनुष्यत्व में आठ भव करे, वैसे ही समस्त तियंचों में भी उसी प्रकार आयु पूर्ण करे । जघन्य से कायस्थिति सब जगह अंतर्मुहूर्त प्रमाण है।
पर्याप्ता में संख्याता भव करे, विकलेन्द्रियपने में संख्यात सहस्र वर्ष रहे । वहां गुरु आयुष्य, लघु आयुष्य, अनंतर और तद्भव के भेद से चौभंगी होती है । घर्मा से मचा पयंत और भवनपति से सहस्रार देवलोक पर्यन्त नारक और देवों में एकान्तर से चारबार उपपात होता है। उत्कृष्ट आयुष्य वाले जीव सातवीं नरक में दोबार उत्पन्न होते हैं। अच्युत देवलोक से नव में अवेयक तक तीन वार उत्पत्ति होती है।