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कुरुचन्द्र नृप कथा
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को कुरुचन्द्र राजा के समान तज कर सुपरीक्षितकारी अर्थात् समुचित विचार करके प्रत्येक क्रिया करता है।
कुरुचन्द्र राजा की कथा इस प्रकार है। ___गद (रोग) रहित तथापि सगज (हाथियों सहित) किसी से भी अहत (अपराजित) व सर्वदा सुभग- कंचनपुर नामक नगर था, वहाँ कुरुचन्द्र नामक नरेन्द्र था । उसका जिनोदित सात तत्व रूप सात उत्तम घोड़ों से चलने वाला और सूर्य के समान अज्ञात रूप अंधकार के जोर को रोकने वाला रोहक नामक मन्त्री था।
अब उक्त राजा गडरिप्रवाह छोड़कर उत्तम धर्म को भलीभांति जानने की इच्छा करता हुआ मन्त्री को इस भांति कहने लगा--कि हे सचिवपुगव ! मुझे कह कि कौनसा धर्म उत्तम है ? तब मन्त्री बोला कि-सहज में देवं और मनुष्यों को हीलने वाली इन्द्रियों के जय का जहाँ वर्णन किया हो वह धर्म उत्तम है।
राजा ने कहा कि वह किस प्रकार जाना जाय १ तब मंत्री बोला कि-जैसे यहाँ उद्गार से न देखे हुए भोजन की भी खबर पड़ती है, वैसे ही वचन पर से उसकी खबर पड़ सकती है।
यह सुन राजा बोला कि--जो ऐसा ही है तो, हे महामंत्री! तू सर्व धर्म वालों को बुलाकर धर्म की विचारणा चला।
तब मंत्री ने वह बात मान कर "सकुडलं वा वयणं नवति" ऐसा समस्या का यह पद लिखकर पटिये पर लटका कर लोगों को कहा कि--जो इस पद के साथ मिलते हुए अर्थ वाले पदों से समस्या पूर्ति करके राजा को प्रसन्न करेगा, उसी का वह भक्त होवेगा।