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गुरुवंदन की विधि
बनाना, ४४ तियंच बांधना, ४५ अग्नि जलाना, ४६ राँधना, ४७ परीक्षण करना, ४८ निसीहि भंग करना, ४९ छत्र, ५० उपानह, ५१ शस्त्र, ५२ चामर धारण करना, ५३ मन की चंचलता रखना, ५४ अभ्यंग करना, ५५ सचित्त वस्तु साथ में रखना, ५६ अचित्त का त्याग करना, ५७ जिन मूर्ति के दीखते ही अंजली न करना, ५८ एक साटी उत्तरासंग न करना, ५९ मुकुट, ६० मौलिया, ६१ शिरः शोखा रखना, ६२ शर्त, ६३ गेंद बल्ला खेलना, ६४ जुहार करना, ६५ भांड चेष्ठा करना, ६६ रेकार, ६७ धरपकड़, ६८ लड़ना, ६९ वाल- केश का विवरण, ७० पालकी वार के बैठना, ७१ पादुका पहिरना, ७२ पाँव फैला कर बैठना, ७३ पुट पुटिका देना, ७४ पंक करना, ७५ धूली डालना, ७६ मैथुन, ७७ जू डालना, ७८ जिमना, ७९ युद्ध, ८० वैद्यक, पर व्यापार करना, ८२ शय्या, ८३ पानी पीना, ८४ मज्जन करना, इत्यादि सदोष काम सरल मनुष्य ने जिन मन्दिर में न करना चाहिये ।
मुहपत्ति की पचीस पडिलेहणा (प्रतिलेखन) पचीस आव श्यक, छः ठाण, छ: गुरुवचन, छः गुण, पांच अधिकारी, पांच अनधिकारी, पाँच प्रतिषेध, एक अवग्रह, पाँच अभिधान, पाँच उदाहरण, तैंतीस आशातना, बत्तीस दोष और आठ कारण इस प्रकार कुल १९२ स्थान वंदना में होते हैं ।
मुहपत्ति की पचीस पड़िलेहणाएं इस प्रकार है: - एक दृष्टि पड़िलेहणा तीन और तीन मिलकर क्रमशः छः अक्खोड़ा व नव और नव मिलकर १८ पक्खोड़ा इस भांति २५ हैं ।
प्रदक्षिणा से दोनों बाहु पर, मस्तक पर, मुख पर और उदर तीन तीन, पीठ पर चार और पग में छः इस प्रकार २५ वार मुहपत्ति फेरना तथा पचीस शरीर पड़िलेहणा हैं ।