________________
पञ्चक्खाण की विधी
२६७
वन्दना करे सो आश्लिष्ट और बिलकुल न लगावे सो अनाश्लिष्ट वह आश्लिष्टानाश्लिष्ट दोष है । वचन व अक्षर से कम बोले अथवा दूसरों से कम समय में वन्दना कर ले सो ऊन दोष है। ___ वन्दना करके "मत्थएण वंदामि" यह पद बोले तो उत्तरचूलिका दोष कहलाता है। गूगे के समान शब्द बोले बिना वन्दना करे सो मूक दोष है । ढड्ढर स्वर से जो सूत्र बोले, सो ढड्ढर दोष है । चूडली के समान रजोहरण लेकर वन्दना करे सो चड़ली दोष है । इस प्रकार बत्तीस दोष गिने जाते हैं।
वन्दन के आठ कारण इस प्रकार हैं :प्रतिक्रमण के लिए, स्वाध्याय के लिए, कायोत्सर्ग के लिए, अपराध कहने के लिए, प्राहुणा आने पर, आलोचना के लिए, संवरण (प्रत्याख्यान ) के लिए और उत्तमार्थ ( अनशन ) के लिए यह आठ कारणों में वन्दना की जाती है।
प्रत्याख्यान की विधि इस प्रकार है:दश प्रत्याख्यान, तीन विधि, चार आहार, अपुनरुक्त बाईस आगार, दश विकृति, तीस विकृतिगत, १४७ भंग और छःशुद्धि । ये आठ द्वार हैं। - दश प्रत्याख्यान ये हैं:- नौकारसी, पौरुषी, पुरिमड्ढ, एकाशन, एकठाणा, आयंबिल, अभक्ताथे (उपवास), चरिम, अभिग्रह,
और विकृति । नौकारसी और पोरसी में 'उग्गए सूरे' बोला जाता है । पुरिमड्ढ और उपवास में 'सूरे उग्गए' बोला जाता है । . गुरु "पञ्चक्खाई पद तथा “वोसिरई" पद बोले और शिष्य "पच्चक्खामि " तथा 'वोसिरामि' पद बोले । पच्चक्खाण में बोलते अक्षर व्यंजन की कोई चूक हो जाय तो वह प्रमाणित नहीं मानी जाती, किन्तु जिस उपयोग से लिया जाता है वह उपयोग ही प्रमाणित माना जाता है।