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चैत्यवंदन की विधि
वर्तमान चौवीसी के तीर्थंकरों की पहिली स्तुति है, दूपरी सर्व जिनों की स्तुति है, तीसरी ज्ञान की स्तुति है और वैयावृत्य करने वाले देव के उपयोगार्थ चौथी स्तुति है।
आठ निमित्त इस प्रकार हैं-पाप खमाने के लिए इरियावही निमित्त, वंदना निमित्त, पूजन निमित्त, सत्कार निमित्त, सन्मान निमित्त, बोधिलाभ निमित्त, निरुपसर्ग निमित्त, और प्रवचन देवता के स्मरण निमित्त कायोत्सर्ग किया जाता है, ये आठ निमित्त हैं।
बारह हेतु इस प्रकार है-तस्स उत्तरीकरण आदि चार, श्रद्धादिक पांच, वैयावञ्चकरत्व आदि तीन इस प्रकार बारह
अन्नत्थ उससिएणं आदि बारह आगार हैं, और एवमाइएहिं, इस पद में आदि पद से चार दूसरे लिये जाते हैं, वे ये हैंअग्नि, पंचेन्द्रियछिंदन, बोधिक्षोभ, और सर्पदंश ।
कायोत्सर्ग के उन्नीस दोष ये हैं-चोटक दोष, लता दोष, स्तंभ दोष, कुख्य दोष, माल दोष, शबरि दोष, वधू दोष, निगड दोष, लंबोत्तर दोष. स्तन दोष, उद्धि दोष, संयति दोष, खलिन दोष, वायस दोष, कपित्थ दोष, शीर्षोत्कंप दोष, मूक दोष, भमुहंगुली दोष, वारुणी दोष, प्रेष्य दोष, इस भांति उन्नास दोष कायोत्सर्ग में वर्जनीय हैं।
(भाष्य में कुख्य दोष नहीं लिया, यहां वह ग्रहण किया गया है। जिससे १९ के स्थान में बीस होते हैं, अतः घोटक लतारूप एक दोष मानने से अथवा अन्य कोई भी दो एक रूप गिनने से १९ दोष हो जावेंगे।) इरियावही के कायोत्सर्ग का प्रमाण पञ्चीस श्वासोश्वास है, शेष आठ श्वासोश्वास के हैं, स्तोत्रं