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चैत्यवंदन की विधि
दो हाथ, दो पग, और मस्तक नमाने से पंचांग प्रणिपात होता है. सूक्ष्म अर्थ वाले एक, दो, तीन से लेकर १०८ तक नमस्कार काव्य बोलना है। ।।
नवकार में अड़सठ वर्ण है, नौ पद हैं, आठ संपदा है उसमें सात संपदा और सात पदों में समान अक्षर हैं और आठवीं संपदा दो पदवाली सत्रह अक्षर की है।
प्रणिपात (लघु वंदना व खमासमण ) में अट्ठावीस अक्षर हैं वैसे ही इरियावही में १९९ अक्षर हैं, बतीस पद हैं और आठ संपदाएं हैं । उन आठ संपदाओं में क्रमशः दो, दो, चार, सात, एक, पांच, दस, एक इस प्रमाण से पद हैं और उन पदों के आदि अक्षर इस प्रकार है :-इच्छा इरि, गम, ओसा, जे मे, एगिदि, अभि, तस्स।
शकस्तव में २९७ वर्ण हैं, नव संपदाएँ हैं, और तैंतीस पद हैं, चैत्यस्तव में आठ संपदाएँ हैं, ४३ पद हैं और २२९ वर्ण हैं। शकस्तव की नव संपदाओं में क्रमशः दो, तीन, चार, पांच, पांच, पांच, दो, चार, तीन इस प्रकार पद हैं और उनके आदि अक्षर ये हैं-नमु, आइग, पुरिसो, लोगु, अभय, धम्म, अप्प, जिण, सव्व।
चैत्यस्तव में आठ संपदाएँ हैं उनके क्रमशः दो, छः, सात, नव, तीन, छ:, चार और छः पद है । संपदाओं के आद्याक्षर इस प्रकार है-अरिहं, वंदण, सद्धा, अन्न, सुहुम, एव, जा, ताव । नामस्तव आदि में संपदा और पद समान ही हैं, नामस्तव में २८ अ तस्तव में १६ और सिद्धस्तव में २० पद और संपदाएँ हैं, तथा नामस्तव में २६० वर्ण हैं, अतस्तव में २१६ वर्ण हैं और सिद्धस्तव में १९८ वर्ण हैं ।