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कुरुचन्द्र नुप कथा
राजा बोला-कि हे क्षुल्लक! आपने इसे श्रृंगार से पूर्ण क्यों न की ? वे बोले-कि जितेन्द्रिय यतियों को वह बोलना योग्य ही नहीं श्री का अंगार सो शृगार है, उस का भी जो यति वर्णन कर तो सचमुच चन्द्रबिंब से अग्नि की वृष्टि हुई मानी जाती है।
देखो ! गीली और सूखी मिट्टी के दो गोले लेकर भीत पर मारे तो जो गीला होता है, वह चिपक जावेगा इस प्रकार जो दुर्बुद्धि काम लालसा वाले हों, वे फंसते हैं किन्तु जो विरक्त होते हैं, वे सूखे गोले के समान कहीं भी नहीं उलझते । ___ इस भांति दुर्दम दुष्टमुख इन्द्रिय रूप घोडे को दमन करने वाले उक्त श्रेष्ठ मुनि का वचन सुन कर राजा विस्मित हो मन में इस प्रकार सोचने लगा।
जैसे रसों में अमृत उत्तम है चंदनों में गौशीर्ष चंदन उत्तम है वैसे ही सर्वधर्मों में जिन-भाषित धर्म हो उत्तम है। इस प्रकार बराबर चितवन करके क्षुल्लक के साथ गुरु के पास जा धर्मकथा सुन कर उसने गृहस्थ-धर्म स्वीकार किया। चिरकाल उक्त धर्म का पालन कर रोहक मंत्री के साथ कुरुचंद्र महाराजा सुखभाजन हुआ।
इस प्रकार सुविवेकीजनरूप मयूरों को हर्षित करने के लिये मेघगर्जना के समान कुरुचंद्र राजा का चरित्र सुन कर भव्यजनों ने गडरी प्रचाह का त्याग कर निर्मल जिन-धर्म पालना चाहिये।
इस प्रकार कुरुचंद्र राजा की कथा संपूर्ण हुई। इस प्रकार सत्रह भेदों में गडरि प्रवाह रूप नवमां भेद कहा। अब आगम पुरस्सर सर्व क्रियाएं करे । इस दसर्व भेद का वर्णन