________________
शिवकुमार का दृष्टांत
२३३
मिल सकता है। और शुद्ध चारित्र प्रायः करके गृहवास में रहने वाले को संभव ही नहीं। अतः तुमे गृहवास का त्याग करके निर्मल चारित्र लेना चाहिये। ___ यह सुन शिवकुमार पूछने लगा कि-हे भगवन् ! अपने बीच में क्या पूर्व भव का स्नेह होगा कि-जिससे आपको देखने से मुझे आंधकाधिक हर्ष बढ़ता है।
तब अवधिज्ञान से जानकर मुनींद्र बोले कि-पूर्वकाल में भरतक्षेत्र के सुग्राम में एक राठौड़ की रेवती नामक स्त्री के गर्भ से जन्मे हुए भवदत्त और भवदेव नामक दो भाई थे। वे दीर्घकाल तक व्रत का पालन करके सौधर्म-देवलोक में उत्पन्न हुए। उनमें के भवदत्त का जीव मैं हूं और भवदेव का जीव तूं हुआ है। जिससे पूर्वभव के स्नेह से मेरे में तेरा हर्ष बढ़ता है।
तब गृह्वास से विरक्त हो शिवकुमार बोला कि-हे मुनींद्र ! माता पिता से पूछ कर मैं आपके पास दीक्षा ग्रहण करूगा । यह कह गुरु को नमन करके वह घर जाकर माता पिता को पूछने लगा। तब वे उसके ऊपर गाढ़ प्रतिबंध से बंधे हुए मन वाले होने से इस प्रकार कहने लगे।
जो तू हमारा भक्त हो और जो तू हमको पूछ कर व्रत लेता हो तो सदैव हमारी जिह्वा तुझे दीक्षा लेने का निषेध ही करती रहे। इस भांति माता पिता के रोक कर रखने से शिवकुमार ने सर्व सावध का त्याग कर घर ही में रह कर भावयतित्व अंगीकार किया। उसने माता पिता को उद्वेग देने के लिये मौन धारण करके भोजन भी बन्द कर दिया । तब राजा ने दृढ़धर्म नामक श्रेष्टिकुमार को बुला कर इस प्रकार कहा :