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जिनपालित का दृष्टांत
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साथ उसने भोगविलास किया । पश्चात् एक छोटे से अपराध को बड़ा मान कर मुफे शूली पर चढ़ाया है और इसी प्रकार अन्य मनुष्यों की भी दशा हुई है।
तब प्रचंड पवन से कांपते वृक्ष के समान भय से कांपते हुए ये बोले कि-हे भद्र ! इसी भांति उसने हमको भी पकड़ा है। इसलिये हमारे क्या हाल होंगे? तब वह बोला कि-यह कौन जाने, किन्तु मैं सोचता हूँ कि शीघ्र ही तुम भी इसी दशा को पहुँचोगे। तब माकंदी के उन दोनों पुत्रों ने दीनवचन से कहा कि-हे भद्र ! जो तू कुछ उपाय जानता हो तो कृपा कर बता । तब शली पर चढ़ छिदा हुआ होने पर भी करुणावान् वह मनुष्य बोला कि-हे भद्रों ! वास्तव में एक उपाय है । वह यह कि-यहां पूर्व ओर के उद्यान में घोड़े का रूप धरने वाला सेलक नामक यक्ष रहता है । वह उसे नमने वालों को सुख प्राप्त कराता है ।
वह सदैव अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पौर्णिमा को उच्च स्वर से गर्जता है कि-"किसको तारू ? किसको पालू?" उस समय तुम कहना कि-हे नाथ ! हम अनाथों पर कृपा करके हमको तारो और बचाओ। तो वह तुम्हारी रक्षा करेगा । मैं विषयों के विष से मुग्ध होकर महामुर्ख हो गया । जिससे यह उपाय नहीं कर सका। परन्तु तुम इस विषय में लेश मात्र भी प्रमाद मत करो । यह वचन स्वीकार कर वे उस उद्यान में आकर, स्नान कर, दोनों जने कमल लेकर यक्ष के मंदिर में आये । व नमने वाले की रक्षा करने वाले, और उपद्रव का नाश करने वाले उक्त चालाक यक्ष की पूजा करके, भक्ति पूर्वक भूमि में मस्तक लगा कर उसको नमन करने लगे। . इस प्रकार करते ठीक समय पर यक्ष उनको कहने लगा कि"किसको तारू? किसको पालू?" तब वे बोले-हे स्वामिन् !