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विषयो के त्याग पर
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वह हर्षित हो बहुत किलकिल करके जिनपालित को नाना प्रकार से उपसर्ग करने लगी, किन्तु उसको क्षमित न कर सकी, तब अपने स्थान को चली गई। बाद थोड़े समय ही में उस यक्ष ने जिनालित को चंपापुरी में पहुँचाया। वह मां बाप को मिला और उसने सब वृतान्त कह सुनाया । तब वे अश्रुपूर्ण नयन होकर जिनक्षित का मृत कार्य करने लगे । तदनन्तर एक वक जिनपालित ने सुगुरु से दीक्षा ली ।
वह एकादश अंग पढ़ कर चिरकाल प्रव्रज्या का पालन कर दो सागरोपम के आयुष्य से प्रथम देवलोक में देवता हुआ । वहां से च्यवन कर विदेह में उत्पन्न हो, विषयों का त्याग कर, व्रत लेकर वह मोक्ष को जावेगा। अब इस जगह इस बात का उपनय है ।
द्वीप की देवी के समान यहां पापमय विषयाविति जानो । लाभार्थी वणिकों के समान सुखार्थी प्राणी जानो । उन्होंने भयभीत होकर वधस्थान में जैसे पुरुष देखा, वैसे यहां सैकड़ों भवदुःखों से भय पाये हुए प्राणी महा परिश्रम से धर्मकथिक पुरुष को प्राप्त कर सकते हैं । उस शूली पर चढ़े हुए प्राणी ने जैसे देवी को दारुण दुःखों की कारण और सेलक यक्ष से उन दुःखों का निस्तार बताया । वैसे यहां विरतिस्वभाव वाला धर्मकथिक पुरुष भव्य जीवों को कहता है कि- विषयाविरति सैकड़ों दुःखों की हेतुभूत है और दुःखी जीवों को चारित्र सेलक की पीठ पर चढ़ने के समान है । संसार समुद्र के समान है और मुक्ति को . जाना, सो अपने घर पहुँचने के समान है ।
जैसे देवी के व्यामोह से जिनरक्षित सेलक की पीठ से गिर कर मरा, वैसे ही विषय के मोह से जीव चारित्रभ्रष्ट हो कर