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________________ विषयो के त्याग पर २२६ वह हर्षित हो बहुत किलकिल करके जिनपालित को नाना प्रकार से उपसर्ग करने लगी, किन्तु उसको क्षमित न कर सकी, तब अपने स्थान को चली गई। बाद थोड़े समय ही में उस यक्ष ने जिनालित को चंपापुरी में पहुँचाया। वह मां बाप को मिला और उसने सब वृतान्त कह सुनाया । तब वे अश्रुपूर्ण नयन होकर जिनक्षित का मृत कार्य करने लगे । तदनन्तर एक वक जिनपालित ने सुगुरु से दीक्षा ली । वह एकादश अंग पढ़ कर चिरकाल प्रव्रज्या का पालन कर दो सागरोपम के आयुष्य से प्रथम देवलोक में देवता हुआ । वहां से च्यवन कर विदेह में उत्पन्न हो, विषयों का त्याग कर, व्रत लेकर वह मोक्ष को जावेगा। अब इस जगह इस बात का उपनय है । द्वीप की देवी के समान यहां पापमय विषयाविति जानो । लाभार्थी वणिकों के समान सुखार्थी प्राणी जानो । उन्होंने भयभीत होकर वधस्थान में जैसे पुरुष देखा, वैसे यहां सैकड़ों भवदुःखों से भय पाये हुए प्राणी महा परिश्रम से धर्मकथिक पुरुष को प्राप्त कर सकते हैं । उस शूली पर चढ़े हुए प्राणी ने जैसे देवी को दारुण दुःखों की कारण और सेलक यक्ष से उन दुःखों का निस्तार बताया । वैसे यहां विरतिस्वभाव वाला धर्मकथिक पुरुष भव्य जीवों को कहता है कि- विषयाविरति सैकड़ों दुःखों की हेतुभूत है और दुःखी जीवों को चारित्र सेलक की पीठ पर चढ़ने के समान है । संसार समुद्र के समान है और मुक्ति को . जाना, सो अपने घर पहुँचने के समान है । जैसे देवी के व्यामोह से जिनरक्षित सेलक की पीठ से गिर कर मरा, वैसे ही विषय के मोह से जीव चारित्रभ्रष्ट हो कर
SR No.022138
Book TitleDharmratna Prakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages350
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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