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परुषवचनाभियोग वर्जन पर
और विवेकी श्रावक ऐसी प्रज्वलित अग्नि के समान वाणी बोलते हैं। वैसे ही किसी को भी अप्रिय बोलने पर वह पीछा दुगुना अप्रिय बोलता है, अतः अप्रिय नहीं सुनना चाहने वाले ने किसी को भी अप्रिय नहीं कहना चाहिये । ___ सदैव कर्कश बोलने वाले का परिवार उसकी ओर विरक्त हो जाता है और उससे उसकी सत्ता निर्बल पड़ जाती है तथा अपने परिवार को शिक्षा न देने से उसका नायक म्लान हो जाता है, अतः नित्य प्रति कोमल भाषा से शिक्षा देकर कुटुम्ब परिवार को शिक्षित करना चाहिये। ___ माधुर्यता लाना स्वाधीन है, वैसे ही मधुर शब्दों वाले वाक्य भी स्वाधीन ही हैं, तो फिर साहसी पुरुष किसलिये परुष वचन
बोले ?
इसी कारण से श्री वर्धमानस्वामी ने महाशतक श्रावक को सत्य किन्तु परुष वचन बोलने पर प्रायश्चित ग्रहण कराया।
मतान्तर से याने कि अन्य आचार्यों के मत से अदुराराध्यता नामक छठा शील है वह भी अपरुष भाषण में आ जाता है। (क्योंकि सुख से जो सेवन किया जा सके वह अदुराराध्य कहलाता है और वह जब मिष्टभाषी हो तभी हो सकता है)
महाशतक का वृत्तान्त यह हैराजगृह नगर रूप सरोवर का विभूषण महाशतक नामक गृहपति था। वह कमल जैसे श्रीनिलय भ्रमर हित (भ्रमर को हितकारी) नालस्य पद (नाल का स्थान ) होता है वैसे ही श्रीनिलय (लक्ष्मीवान्) भ्रम रहित व आलस्यहीन था। उसके पास चौवीस कोटि धन था। जिसमें आठ कोटि निधान में, आठ कोटि ब्याज