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सर्वचक क्रिया का स्वरूप
लगा कि-हे दुष्ट ! तू सत्यहीन होने से यद्यपि जीभ काटने के योग्य है, तथापि कमल का पुत्र है इसलिये तुझे विमुक्त करता हूँ।
अब सागर मी प्रसन्न होकर बोला कि-हे राजन ! मैं सकल माल पचित्रात्मा और निर्लोभी कमलसेठ को दूगा । तब उसकी महान् पवित्र सद्बुद्धि से प्रसन्न होकर उक्त नृपति-शिरोमणि ने सागर को मंत्रीश्वर पदरूप पानी का सागर बनाया। इस प्रकार यथार्थ भाषण में निपुण कमल ने निर्मल लक्ष्मी पाई और दीक्षा लेकर केवलज्ञान प्राप्तकर मुक्ति को गया ।
इस प्रकार मृषावाद रूस वृक्ष को गिराने के लिये दीप्तिमान हाथी के समान कमल सेठ का यथार्थ वृत्तान्त सुनकर, हे जनों! तुम निदनीय असत्य वाक्य का त्याग करके सदैव यथार्थ कहने का यत्न करो।
___ इस प्रकार कमल सेठ की कथा है। इस प्रकार ऋजुव्यवहार में यथार्थ भाषण स्वरूप प्रथम भेद कहा, अब दूसरा भेद कहते हैं- अवंचिगा किरिया - अपंचक क्रिया अवचक याने दूसरे को हेरान न करने वाली क्रियाअर्थात् मन, वचन, काया के व्यापार, वह दूसरा ऋजुव्यवहार का लक्षण है, क्योंकि कहा है कि शुद्ध धर्मार्थी पुरुप नकली माल बनाकर अथवा न्यूनाधिक तौल मापकर दूसरे को देने लेने में ठगे नहीं।
सुमतिवान् पुरुष वचन क्रिया से यहां केवल पाप मात्र ही उत्पन्न होता है, ऐसा देखता हुआ हरिनंदी के समान उससे सर्व प्रकार दूर रहता है।