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दूसरा लक्षण इन्द्रिय संयम का स्वरूप
तब राजा ने उन्हें घर में बुला कर, आसन पर बैठा कर कहा कि-आप यह राज्य लीजिए, मैं आपका किंकर हूँ । तब साधु बोले कि-हे नरवर ! हम निःस्पृह और निसंग हैं अतः हमको पाप कर्म से भरपूर राज्य का क्या काम है ?
अतएव तू भो सुरनर और मोक्ष को लक्ष्मी संपादन कर देने में समर्थ जिनधर्म का ययाशक्ति पालन कर।
यह सुनकर नरेन्द्र ने प्रसन्न हो काष्ट मुनि से निर्मल सम्यक्त्व के साथ गृहिधर्म स्वीकार किया। यह वृत्तान्त सुनकर वना को मानो वन का घाव लगा, जिससे वह राजा के भय से भयातुर हो बटुक के साथ भाग गई ।
पश्चात् राजा को प्रार्थना से मुनि वहीं चातुर्मास रहे और बहुत से लोगों को प्रतिबोधित कर अनेक प्रकार से प्रवचन की प्रभावना करने लगे।
वे तप द्वारा अज्ञानी मनुष्यों को भी चमत्कृत करते हुए चिरकाल तक निर्मल व्रत पालन कर सुगति को गए । इस प्रकार काष्टष्टि का अवंचक पन तथा वैराग्य पूर्ण शुद्ध वृत्तान्त सुनकर हे भव्यजनों ! तुम सर्व दोनों को खानि स्त्रीयों के वश में मत होओ।
इस प्रकार काष्टसेठ की कथा पूर्ण हुई। इस प्रकार सत्रह भेदों में स्त्री रूप प्रथम भेद कहा अब इन्द्रिय नामक दूसरे भेद की व्याख्या करते हैं
इंदियाचवलतुरंगे दुग्गइमगाणुधाविरे निच। भाविय भवस्सरूवो रुमा सनापरस्सीहिं ।। ६१ ।।