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चारुदत्त का दृष्टांत
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दिया, तब लिंगी ने उसे कुए में गिरा दिया, वह जाकर नीचे के तल में गिरा । तब उक्त वणिक ने उसे कहा कि-गोह की पूछ पकड़ कर तू ऊपर जा । जिससे वह वैसा ही करके नवकार मंत्र स्मरण करता हुआ ऊपर आया । ___ अब वह ज्योंही पर्वत की कन्दरा में से बाहर निकला, त्योंही एक पाड़ा उसके सन्मुख दौड़ा, जिससे वह शिला पर चढ़ गया। इतने में वहां एक अजगर निकला । वह पाड़े के साथ लड़ने लगा। इतने में मौका देखकर चारुदत्त वहां से भाग निकला। अब उसे एक समय रुद्रदत्त नामक मामा का पुत्र मिला । वे दोनों जने अलक्तक आदि माल लेकर, सुवर्ण भूमि की ओर चले और वेगवती नदी उतरकर पर्वत की शिखर पर पहुँचे । वहां से चित्रवन में आये । वहां उन्होंने दो बकरे खरीदे व उन पर चढ़कर उन्होंने बहुतसा मार्ग व्यतीत किया ।
इतने में रुद्रदत्त ने कहा कि यहां से आगे की भूमि ठीक नहीं है। अतः इन बकरों को मार कर उनका चमड़ा निकालकर उसमें घुस जाना चाहिये । ताकि मांस की भ्रांति से अपने को भारंड पक्षी उठा ले जावेंगे। जिससे हम सुखपूर्वक सुवर्णभूमि में पहुंच जावेगे। तब चारुदत्त उनको कहने लगा किजिन्होंने हमको विषमभूमि से पार किया, वे बकरे तो अपने हितकारक होने से सहोदर भाई के समान हैं, उन्हें कैसे मारें ?
रुद्रदत्त बोला कि-तू कोई इनका मालिक नहीं है, जिससे उसने पहिले एक को मारा, और फिर दूसरे को मारने लगा, तब वह बकरा चंचल नेत्रों से चारुदत्त की ओर देखने लगा । तब चारुदत्त उसे कहने लगा कि -तू बचाया नहीं जा सकता है