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स्त्रीवशवर्ति न होने पर
(नीचे बहने वाली ) नदी के समान महिला भी जड़ को पकड़ने वाली दुरंत, पितृ व श्वसुर दोनों पक्षों का नाश करने वाली, दुराचारिणी, विषम मार्ग में नीच के साथ चलने वाली है अतएव उसका त्याग करो।
इस प्रकार बराबर सोचकर उसने सम्पूर्ण धन धर्ममार्ग में देकर कर्मरूप गिरि को तोड़ने के लिये वन समान दाक्षा ग्रहण की।
अब वना भो राजा के भय से भागकर बटुक के साथ चंपा में आकर रहने लगो क्योंकि उसका पुत्र वहां का राजा है ऐसी उसको खबर नहीं था। अब काष्ट मुनि महान् तप में परायण रहकर गीतार्थ हो एकाएक विचरते हुए किसी समय चंपा में आये।
वहां वे भिक्षार्थ घर घर भ्रमण करते हुए वना के घर में आये, उसने जान लिया कि-यह मेरा पति है।
अतएव यह लोगों में मेरे दोष अवश्य कह देगा, तो मैं ऐसा करू कि-जिससे इसका शीघ्र देश निकाला हो।
जिससे उसने सोना सहित मंडक (मांडो आदि) उनको दिये, उन्होंने सहसा ले लिये, तब उसने चोर २ करके चिल्लाया ।
जिससे कोतवाल ने वहां आकर उनको पकड़ा व राजमंदिर में लाया उन्हें सहसा धाय ने देख लिया और पहिचान लिया।
जिससे वह उनके चरणों में गिरकर सिसक सिसक कर रोने लगी, तब राजा ने कहा कि-हे अंबा ! तू अकारण क्यों रोती है ? तब वह गद्गद् स्वर से कहने लगी कि-ये तेरे पिता हैं और इन्होंने दीक्षा ले ली है, इनको मैंने बहुत समय में देखा इसलिये हे वत्स ! मैं रोती हूँ।