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इन्द्रिय संयम पर
सदैव मलीन चित्तवाली महिला धन का नाश करती है, पति को मारती है, पुत्र की भी इच्छा करती है तथा अभक्ष्य का भी भक्षण करती है । तथा स्त्री अशुचिपन, अलीकपन, निर्दयपन, वंचकपन व अतिकामासक्तपन इन की स्थानभूत है ।
स्त्री के संग से या तो मृत्यु होती है या विदेश में जाना पड़ता है, या दरिद्रता प्राप्त होती है, या दुर्भाग्य प्राप्त होता है या चिरकाल तक संसार में भटकना पड़ता हैं । अतः जो यह बात पिता को कहूँगा तो वे मानेंगे नहीं क्योंकि प्रायः सभी स्त्रियों के वचन पर अधिक विश्वास रखते हैं ।
जो रहता हूँ तो विरोध होता है, जो चला जाऊँ तो यह बात सत्य मानी जावेगी, तथापि पिता के साथ विरोध करना उचित नहीं ।
तथा क्रोध पर चढ़ा हुआ मारता है, लोभ पर चढ़ा हुआ सर्वस्व हरण करता है, मान पर चढ़ा हुआ अपमान करता है और माया वाला सर्प के समान डसता है । परन्तु यह तो कामासक्त, अत्यन्त मायावाली, कूट कपट की खानि तथा लज्जा, नीति और करुणा से रहित इसलिये इसको किसी भी प्रकार से त्यागना चाहिये ।
यह सोच विद्याबल युक्त कुमार तलवार लेकर, आकाश में उड़ता हुआ शीघ्र ही अपने पिता की कुणाला नगरी में आ पहुँचा। वहां अपनी माता कमलश्री को शोक से गाल पर हाथ दिये हुए बैठी देखकर उसके पग के समीप जाकर अपने को प्रकट करने लगा | पश्चात् उसने अपने मातापिता आदि सब लोगों को प्रणाम किया तब उसे अपना पुत्र जानकर कमलश्री मस्तक चूमने लगी ।