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इन्द्रिय संयम पर
. वाला याने बारंबार आलोचना करने वाला पुरुष ज्ञानरूप रस्सियों से रोक रखता है, विजय कुमार के समान ।
विजयकुमार की कथा इस प्रकार हैगुणवृद्धि और निषेध रहित, गुरु-लाघव युक्त वर्णन्यास से परिमुक्त ऐसी अपूर्व लक्षणवृत्ति ( व्याकरण वृत्ति ) के समान गुण की वृद्धि की रुकावट से निराली और गुरुलघु (छोटे बड़े) वों के नाश से परिमुक्त कुणाला नामक नगरी थी।
वहां सकल शत्रुओं का नाश करने वाला आहवमल्ल नामक राजा था, उसको अपने मुख से कमल की लक्ष्मी को जीतने वाली कमल श्री नामक रानी थी।
उनके विजयकुमार नामक पुत्र था, वह अपनी शक्ति से सहज में कार्तिकस्वामी कुमार को भी हलका करता था, अपने रूप से कामदेव को जीतने वाला था और सकल इन्द्रियों के विकार को रोकने वाला था।
वह बाल्यावस्था ही से रूपवान होने से उसको पुत्रार्थी विद्याधर हरण करके वैताग्य की सुरम्य नगरी में लाया।
उक्त अमिततेज नामक विद्याधर ने उसे अपनी रत्नावली देवी को दिया अतः उसने प्रसन्न हो पुत्रवत स्वीकार किया ।
पश्चात् वह सुख पूर्वक पाला गया और वह सर्व कलाएं सीख कर क्रमशः सौभाग्यशाली यौवनावस्था को प्राप्त हुआ। उसे देख कर इन्द्रिय रूप तस्करों से ज्ञान रूप उत्तम रत्न का हरण हो जाने से रत्नावली उसको एकान्त में इस प्रकार कहने लगी
हे सुभग ! तू कमलश्री व आहवमल्ल राजा का पुत्र है और