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इन्द्रिय का स्वरूप
___ मूल का अर्थ-इन्द्रियों रूप चपल घोड़े सदैव दुर्गति के मार्ग की ओर दौड़ने वाले हैं, उनको संसार का स्वरूप समझने वाला पुरूष सम्यक ज्ञान रूप रस्सो से रोक रखता है।
टीका का अर्थ-यहां इन्द्रियां पांच हैं-श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसना और स्पर्शन उनका विशेष वर्णन इस प्रकार है... श्रोत्रादिक पांच इन्द्रियां द्रव्य से दो भेदों में विभाजित की हुई हैं, एक निर्वृत्ति रूप और दूसरी उपकरण रूप वहां निर्वृत्ति याने आकार समझना चाहिये।
वे बाहर से विचित्र होती हैं, और अंदर इस प्रकार हैंकलंबुका का पुष्प, मसूर का दाना, अतिमुक्तलता, चंद्र और क्षुरप्र इन पांच आकारों की पांच इन्द्रियां है।
विषय का ग्रहण करने में समर्थ हो वह उपकरणेन्द्रिय कहलाती है, कारण कि निवृत्ति रूप इन्द्रिय के होते हुए उपकरणेन्द्रिय का उपघात हुआ हो तो विषय ग्रहण नहीं होता ।
उपकरणेन्द्रिय भो इन्द्रियांतर याने द्रव्यंद्रिय का दूसरा भेद है।
- भावेन्द्रिय का स्वरूप इस प्रकार है। भावेन्द्रिय दो प्रकार की हैं-लब्धिरूप और उपयोगरूप लब्धि याने उसके आवरण क्षयोपशम लब्धि होते हैं, तभी शेष इन्द्रियां मिलती हैं, याने कि, लब्धि प्राप्त होने ही से द्रव्येन्द्रियां होती हैं। ___ उपयोग (इन्द्रिय) इस प्रकार है-अपने २ विषय का व्यापार सो उपयोग जानो, वह एक समय में एक होता है जिससे एक