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विजयकुमार का दृष्टांत
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आया करता है । अथवा धातुवाद, रसायन, यंत्र, वशीकरण और खान की नाद में चढ़ने से व क्रीड़ा के व्यसन से श्रेष्ठ मनुष्य भी भारी कष्ट में आ पड़ते हैं।
इस भांति बहुत देर तक सोचकर राजा कुमार को कहने लगा कि-हे महाबलबान कुमार ! तूं शीघ्र ही उसके पीछे जा, क्योंकि-तू आकाश में जा सकता है तब विजयकुमार बोला किहे प्रभु ! जो पांच दिन के अन्दर तुम्हारी पुत्री को न ले आऊ, , तो फिर मैं यावज्जीवन् विवाह नहीं करूंगा।
यह कह कर कुमार हाथ में तलवार लेकर आकाश में उड़ा। वह प्रतिज्ञा करके विद्याधर के पीछे जाने लगा। इतने में उसने उस खेचर को समुद्र के बीच में स्थित विमलशैल पर्वत के शिखर पर देखा, तब वह उसे इस प्रकार कठोर वचनों से पुकारने लगा___ अरे ! खड़ा रह, खड़ा रह, शरण बुलाले कायर होकर कहां जाता है ? क्या मेरे बल को नहीं जानता है ? जो कि राजा की पुत्री को हरण कर लिये जा रहा है ? तब वह विद्याधर भी उसके वचन से अत्यन्त मत्सर-युक्त हो उसे वन-रत्न के अति तीक्ष्ण चक्र से प्रहार करने लगा।
तब कुमार ने बिजली के समान चंचल तलवार से उस प्रहार को चुका कर विद्या के बल से उसके मस्तक से मुकुट गिरा दिया । तब कुमार का बल जान कर राज-पुत्री को वहीं छोड़कर वह अतिकुपित हो, किष्किन्ध पर्वत के शिखर पर । आया। वहां वे दोनों पांच दिन तक घोर युद्ध करते रहे इतने में कुमार ने जैसे तैसे उसे हरा दिया, तो वह भागा ।