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अर्थरूप तीसरा भेद का स्वरूप
मूल का अर्थ-धन सकल अनर्थ का निमित्त और आयास तथा क्लेश का कारण होने से असार है । यह जान कर धीमान् पुरुष उसमें जरा भी लुब्ध नहीं होते ।
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टीका का अर्थ - यहां मूल बात यह है कि-धन को असार जानकर उसमें लुभावे नहीं । धन कैसा है ? सो कहते हैं कि सकल अनर्थों का निमित्त याने समस्त दुःखों का निबंधन है । क्योंकि कहा है कि-पैंसा पैदा करने में दुःख है। पैदा किये हुए को रखने में भी दुःख है। आते दुःख है और जाते भी दुःख है । अतः कष्ट के घर पैसे को धिक्कार है ।
तथा आयास याने चित्त का खेद, जैसे कि - क्या मुझे राजा रोकेगा ? क्या मेरे धन को अग्नि जला देगी ? क्या ये समर्थ गोत्रीजन मेरे धन में से भाग पड़ावेंगे ? क्या चोर लूट लेंगे ? और जमीन में गाड़ा हुआ क्या कोई निकाल ले जावेगा । इस प्रकार धनवाला मनुष्य रात्रि दिवस चिन्ता करता हुआ दुःखी रहता है ।
तथा क्लेश अर्थात् शरीर का परिश्रम - इन दोनों का धन कारण है, जैसे कि - पैसे के लिये कितने ही मनुष्य मगरों के समूह से भरे हुए समुद्र को तैर करके देशान्तर को जाते हैं । उछलते शस्त्रों के अभिघात से उड़ती हुई आग की चिनगारियों वाले युद्ध में प्रवेश करते हैं। शीतोष्ण पानी और वायु से भीगे हुए शरीर द्वारा खेती करते हैं । अनेक प्रकार का शिल्प करते हैं और नाटक आदि करते हैं।
तथा धन असार है अर्थात् उसमें से कोई हड़ फल प्राप्त नहीं होता । कहावत है कि-धन व्याधियों को रोक नहीं सकता ।