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अभयघोष का दृष्टांत
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ये जो कर रहे हैं, यह तो मेरे समान जरा से जर्जर हुए शरीर वाले को उचित है । अतः जो भाग्यशाली होते हैं, वे ही यह भार उठाते हैं । यह सोचकर उसने उक्त औषधियां बिना मूल्य दे दी और स्वयं भावितात्मा हो, दीक्षा लेकर मोक्ष को गया ।
वे सद्भक्तिवान सब सामग्री तैयार करके उक्त वैद्यकुमार के साथ साधु के पास गये।
उन्होंने नमन करके उनको कहकर उनके सम्पूर्ण अंग में वह तेल लगाया, पश्चात् उन पर कम्बल लपेटा ताकि उसमें से कीड़े निकले व कम्बल ठण्डा लगने से उसमें घुस गये। किन्तु उनके निकलते समय मुनि को बहुत कष्ट हुआ, जिससे चन्दन द्वारा उन पर लेप करने से वे तुरन्त स्वस्थ हो गये। इस भांति प्रथम बार प्रयोग करने से त्वचा के कीड़े निकले, दूसरी बार मांस के और तीसरी बार में अस्थियों में से कीड़े निकले । ___ उन कीड़ों को वे दयालु कुमार मृत बैल के शव में डाल आये
और पश्चात् संरोहिणी औषधि से साधु को शीघ्र ही स्वस्थ कर दिया । पश्चात् उन मुनि को प्रणाम कर खमा करके उस कंबल को आधे मूल्य में बेचकर उससे जिन-मन्दिर बंधवाया ।
पश्चात् वे गृही धर्म और उसके अनन्तर संयम स्वीकार कर अच्युत देवलोक में इन्द्र सामानिक देवता हुए। वहां से च्यवन कर महाविदेह में पांचों भाई हो, दीक्षा लेकर सर्वार्थ-सिद्धि विमान में देवता हुए। अभयघोष का जीव वहां से च्यवन कर इस भरतक्षेत्र में भव्य जनों को बोध देने वाले प्रथम तीर्थंकर के रूप में उत्पन्न हुआ और शेष भरत, बाहुबली, ब्राह्मी और सुन्दरी रूप से उसके अपत्य हुए और सब परम पद को प्राप्त हुए ।