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व्यवहार कुशलता पर
और महामुनि इन्होंने अतुल ऋद्धि का त्याग किया है, इस भांति वक्रोक्ति से उसकी बारंबार हँसी करने लगे ।
तब वह अभी नया होने से उक्त परीषह सहने में असमर्थ हुआ, तब प्रवचनवेत्ता सुधर्मा स्वामी ने उसे कहा कि तुझे संयम में यथोचित समाधान है ? तब वह बोला कि जो आप कृपा कर अन्य स्थल में बिहार करें तो है ।
गुरु बोले कि तुझे समाधि की जावेगी, यह कह वे वहां आये हुए अभयकुमार को कहने लगे कि हमारा यहां से विहार होगा ।
अभय बोला कि - हे प्रभु! एकाएक हम पर ऐसी अकृपा क्यों करते हो ? तब उन्होंने उक्त मुनि का परीषह कहा । अभय बोला कि - एक दिवस रहिये, उतने में जो वह नहीं टले तो फिर न रहिये ।
मुनि के यह बात स्वीकार कर लेने पर शासन की उन्नति में तत्पर और सद्धर्म की महिमा कराने वाला अभयकुमार अपने स्थान को आया ।
उसने राजा के आंगन में तीन करोड़ उत्तम रत्न मंगवा कर उनके तीन ढेर करवाये । पश्चात् पड़ह बजवाया ( घोषणा कराई ) कि - राजा संतुष्ट हो कर तीन करोड़ रत्न देता है अतएव जिसको चाहिये वे ले जाओ ।
तब उन्हें लेने को शीघ्र लोग एकत्रित हुए उनको अभयकुमार कहने लगा कि प्रसन्नता से ये तीन करोड़ रत्न ले जाओ, किन्तु लेने के अनन्तर तुम को आजीवन पानी, अग्नि और स्त्री का त्याग करना पड़ेगा, यह शर्त है ।