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व्यवहारकुशल रूप छट्ठा भेद का स्वरूप
- इस प्रकार शुद्ध भाव से मुक्ति प्राप्त करने वाले ब्रह्मसेन का वृत्तान्त सुनकर, विधि सहित धर्मानुशन में सत्पुरुषों ने सदैव मन लगाना चाहिये।
इस प्रकार ब्रह्मसेन की कथा पूर्ण हुई। ____इस प्रकार प्रवचनकुशल का विधिसारानुष्ठान रूप पांचवा भेद कहा । अब व्यवहार-कुशल-रूप छठे भेद का वर्णन करने के लिये आधी गाथा कहते हैं।
देसद्धादणुरूवं जाणइ गीयत्थववहारं ॥ ५४ ॥ मूल का अर्थ-देश-काल आदि के अनुरूप गीतार्थ के व्यवहार को जाने।
टीका का अर्थ- देश सुस्थित वा दुस्थित आदि। काल सुकाल दुष्काल आदि । आदि शब्द से सुलभ दुर्लभ वस्तु तथा स्वस्थता, रुग्णता आदि लेना, उनके अनुकुल गीतार्थ व्यवहार को जाने । सारांश यह कि-उत्सर्गापवाद के ज्ञाता और गुरु लाघव के ज्ञान में निपुण गीतार्थों का जो व्यवहार हो उसे दूषित नहीं करे । ऐसा व्यवहार कौशल छठा भेद है । यह भेद उपलक्षण रूप से है। इससे ज्ञानादिक तीन आदि सर्व भावों में जो कुशल हो, उसे प्रवचन कुशल जानो । अभयकुमार के समान ।
अभयकुमार की कथा इस प्रकार है । पृथ्वी के स्वस्तिक समान सुशोभित अतुल ऋद्धि का स्थान, मनोहर मंगल परिपूर्ण राजगृह नामक नगर था । वहां दृढ़ जड़ डालकर ऊगे हुए घने मिथ्यात्व रूप बन का