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अचलपुर के श्रावकों का दृष्टांत
पश्चात् अति प्रीति से उसे भोजन कराया किन्तु उसे तो अपनी होने वाली विगोपना के अत्यन्त भय से भोजन के स्वाद की भी खबर नहीं पड़ी।
अब जलस्तंभ देखने को उत्सुक हुए लोगों से परिवारित वह तापस भोजन करके पुनः नदी के कोनारे आ पहुँचा। उसने विचार किया कि अभी भी लेप का कुछ अंश रहा होगा, यह सोच ज्योंही वह पानी में पैठा त्योंही बुड़ बुड़ करता डूबने लगा। तब उसके डूब जाने पर लोग विचारने लगे कि-इस मायावी ने अपने को
आज तक कितना ठगा? यह सोच मिथ्यात्वी लोग भी जिनधर्मानुरागी हुए।
अब उस समय नगर के लोग वहां ताली बजा २ कर तुमुल मचाने लगे। इतने में वहां योग संयोग के ज्ञाता आर्यसमिताचार्य पधारे। वे जिन शासन को प्रभावना करने के लिये नदी के मध्य भाग में योग विशेष (अमुक द्रव्य) डाल कर लोगों के सन्मुख इस प्रकार कहने लगे कि
हे बिन्ना नदी ! हम तेरे दूसरे किनारे जाना चाहते हैं, तब शीघ्र ही उसके दोनों किनारे जैसे संध्या समय चिंचोड़े के दो दल मिलते हैं उस भांति साथ मिल गये । तब महान् आनन्द से परिपूर्ण चतुर्विध संघ के साथ श्री आर्यसमिताचार्य नदी के दूसरे किनारे पहूँचे । तब ऐसे प्रभावशाली आचार्य को देख कर वे सर्व तापस मिथ्यात्व का त्याग कर उनसे प्रव्रज्या लेने लगे। वे तापस ब्रह्मद्वीप में रहते थे। अतः उनके वंश से ब्रह्मदीपक के नाम से विद्वान साधु हुए। इस प्रकार कुमति के ताप का शमन करने वाले, भव्य जन के मन और नेत्र रूप मोर को आनन्द देने वाले वे नवीन मेघ के समान गुरु अन्य स्थल में विचरने