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औषध भेषज संप्रदान पर
पूर्व महाविदेह में शत्रुओं से अजित वत्सावती नामक विजयान्तर्गत प्रभंकरा नामक उत्तम नगरी थी । उसमें सत्कर्म करने में कटिबद्ध और वैद्यक में प्रवीण अभयचोत्र नामक सुविधि वैद्य का पुत्र था । उसके राजकुमार, मंत्री कुमार, सार्थवाहकुमार और श्रेष्टी कुमार चार सद्गुणी व प्रशंसनीय मित्र थे ।
एक समय वे वैद्य के घर एकत्रित हुए। वहां भ्रमर के समान मधुकरी को फिरते हुए अनगार ( घर रहित ) एक साधु पधारे। वे पृथ्वीपाल नामक राजा के गुणाकर नामक पुत्र थे और उनको गलित्कुष्ट हो गया था । यह देख वे भित्र गण वैद्यकुमार को कहने लगे :
तुम
वैद्य वेश्या के समान सदैव पैसे ही में दृष्टि रख कर लोगों को खाने हो, किन्तु किसी तपस्वी आदि को चिकित्सा नहीं करते। वैद्यकुमार बोला कि मैं इन मुनि की चिकित्सा करूंगा, किन्तु हे भद्र बन्धुओं ! मेरे पास औषधियां नहीं है ।
वे बोले कि मूल्य हम देते हैं, तू हमको उत्तम औषधि बता । वह बोला कि - लाख का गोशीर्ष चन्दन और लाख का रत्न - कंबल खरीद लाओ, शेष तीसरा लक्षपाक नामक तैल तो मेरे घर ही में है । अतः उक्त दोनों वस्तुएँ शोघ्र लाओ ।
वे दो लाख द्रव्य लेकर कुत्रिकापण की दूकान पर जाकर उक्त दोनों औषधियां मांगने लगे, उनको उक्त दूकानदार सेठ ने पूछा कि इनका तुम्हें क्या काम है ? वे बोले कि इनके द्वारा साधु 'की चिकित्सा करना है ।
यह सुन सेठ विचार करने लगा कि कहां तो इनकी प्रमाद रूप सिंह की क्रीड़ा करने के समान कानन रूप यौवनावस्था और कहां ऐसी वृद्धावस्था को उचित विवेक पूर्ण बुद्धि !!