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पद्मशेखर राजा का दृष्टांत
जो यह मेरे पास से तेल से भरा हुआ पात्र उठा कर उसमें से एक बिन्दु भी गिराये बिना सारे नगर में फिरा कर मेरे पास आकर रखे, तो तेरे मित्र को छोड़ दूं। तब उसने राजा की उक्त आज्ञा विजय को सुनाई, तो उसने भी जीवित रहने की आशा से वह स्वीकार की। ___ पश्चात् सारे नगर में पद्मशेखर राजा ने पड़ह वेणु, वीणादि के शब्द से गाजते हुए तथा अति मनोहर रूप, लावण्य व शृगार युक्त वेश्याओं के विलास से युक्त सर्व इन्द्रियों को सुख देने वाले
सैकड़ों नाच तमाशे शुरू करवा दिये। ___अब वह विजय यद्यपि अत्यन्त रसिक था, तथापि मृत्यु के भय से अत्यन्त भयातुर होकर तैल भरे हुए पात्र में मन रख कर. सारे नगर में फिरने लगा, पश्चात राजा के समीप आकर यत्न पूर्वक वह पात्र उसके सन्मुख धर प्रणाम किया । तब राजा कुछ हँस कर बोला किः
हे विजय ! तू ने इन अतिवल्लभ नाच तमाशों में भी अति चंचल मन और इन्द्रियों को किस प्रकार रोक रक्खा ?
वह बोला कि- हे स्वामिन् ! मृत्यु के भय से । तब राजा बोला कि- जो तू एक भव की मृत्यु के भय से अप्रमाद सेवन कर सका तो अनन्त भवों की मृत्यु से डरने वाले मुनि उसका सेवन क्यों नहीं कर सकते ? यह सुन विजय प्रतिबोध पाकर परम श्रद्धावन्त हो गया।
इस प्रकार गुरु के गुण वर्णन करता हुआ बहुत से लोगों को प्रतिबोधित कर, पद्मशेखर राजा सुगति का भाजन हुआ। इस प्रकार कदाग्रह को जीतने में मंत्र समान पद्मशेखर महाराज का