________________
सुमित्र का दृष्टांत
१५३
उसकी आंखों में पीड़ा होती है, उसे आज तीसरा मास हो गया है । वैद्यों ने उसका रोग असाध्य बताया है, जिससे उसके पिता ने वहां ऐसी घोषणा की है कि- जो मेरी पुत्री को निरोग करे उसीसे मैं इसका विवाह करूगा और साथ ही आधा राज्य भी दूंगा।
किन्तु हे तात ! अभी तक किसी ने पड़ह को छूआ नहीं। उक्त पड़ह को आज छठा दिन है, इसलिये हे तात ! कहिये कि उसकी आंखों के रोग की कोई औषधि है या नहीं? तब वृद्ध पक्षी बोला कि- निश्चयतः उसके जानते हुए भी दिवस में भी नहीं कहना चाहिये, तो फिर हे पुत्र ! रात्रि में किस प्रकार कहा जाय ? ' ___ उस पक्षी ने कहा कि- हे तात ! हमारा निवास स्थान बहुत बड़ा है, जिससे यहां कोई सुनने वाला नहीं, इसलिये कहो । तब वह बोला कि- हे वत्स ! मैंने पूर्व में ऐसा सुना है कि___मार्ग में चलते हुए और रात्रि को यहां बसे हुए जैन साधु बोलते थे कि- यह वृक्ष बहुत उच्च लक्षणों वाला व आंख के रोग का नाशक है । यदि कोई इस वृक्ष के पत्तों का रस उसकी आंखों में डाले तो उसे शीघ्र आराम हो जावे। ___ यह बात सुनकर सुमित्र सोचने लगा- षट् काय के हितकर्ता, मित्रता गुण के मंदिर, दूरित रूप अग्नि बुझाने में मेघ समान
और सम्यक् ज्ञान रूप रत्न के रत्नाकर समान जैन मुनि असत्य नहीं बोलते । यह निश्चय कर उस वृक्ष के स-रस पत्रे साथ लेकर उसने अपने को सिंहलद्वीप से आये हुए भारंड पक्षी के पैर में बांधा । अब वह भारंड पक्षी उसे वहां ले गया। वहां पड़ह को छू कर राजा के पास गया । राजा ने उसकी उचित प्रतिपत्ति करके कुशल वातों पूछी, उसने कुशल वार्ता कहकर संध्या को बलि