________________
१६०.
गुरु भक्ति करने पर
लगे। इधर जिनदत्त सेठ दूसरी जगह देव दुन्दुभि बजता देख विचार करने लगा कि-मुझे धिक्कार है और मैं अधन्य हूँ, क्योंकिवीर प्रभु मेरे यहां नहीं पधारे।
उस नगर में उसी दिन दूसरे केवली भगवान् का आगमन हुआ, वहां राजा आदि आकर उनको नमन करके पूछने लगे कियहां पुण्यवान कौन है ? केवली बोले कि- जिनदत्त है। राजा बोला कि- भगवान को पारणा तो अभिनव सेठ ने कराया है।
केवली ने जिनदत्त सेठ की मूल से भावना कहकर कहा किभाव से उसने प्रभु को पारणा कराया है और उसने उस समय महान् बहुमान से बारहवे देवलोक को जाने योग्य कर्म संचय किया है और उसने उस समय देव दुन्दुभि न सुनी होती तो उसी समय उज्वल केवल-ज्ञान प्राप्त करता और यह भाव शून्य अभिनव सेठ ने मात्र सुपात्र-दान से स्वर्ण-वृष्टि आदि फल पाया है।
जो जीव सद्भाव से रहित हो तो उसे इहलौकिक फल भी नहीं मिलता, किन्तु सद् भक्तिवान् हो तो वह क्षण भर में स्वर्ग और मोक्ष भी पा सकता है । पश्चात् जिनदत्त सेठ की प्रशंसा करके वे सब अपने अपने स्थान को चले गये और वह सेठ भी चिरकाल तक धर्म का आराधन करके बारहवें अच्युत देवलोक को पहुँचा ।
इस भांति शुद्ध-दृष्टि जीर्ण सेठ का सद्भाव युक्त वृत्तान्त सुन कर, हे भव्यों ! तुम सद्गुरु की सेवा की आदत धारण करो।
___इस प्रकार जीर्ण सेठ की कथा है। इस प्रकार गुरुशुश्रू ष लक्षण का गुरु-सेवा रूप प्रथमभेद कहा. अब इसीका कारण रूप दूसरा भेद कहने के लिये आधी गाथा कहते हैं