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सद्भाव से मित्रता पर
___दूसरों ने भी कहा है किअति सरल नहीं होना, वनस्पति को देखो-जो सरल होती है वह काटी जाती है और टेढ़े झाड़ सदा खड़े रहते हैं । __तथा गुणों ही की बुराई से धोरी बैल को धुरी में जोतते हैं और गलीया बैल अपने कंधे में कोई प्रकार का घाव पड़े बिना ही सुख से खड़ा रहता है । तब इन मुखाँ को उत्तर देने में सुमित्र असमर्थ हो गया, जिससे वसुमित्र ने उसका सर्वस्व ले लिया और उसे साथ से अकेला निकाल दिया। वह सहसा वन में पड़कर चिंता और दुःख से संतप्त होते हुए भी स्वभाव ही से सन्मित्रता वाला होने से इस प्रकार विचारने
लगा. हे जीव ! पूर्व जन्म के कटु-कर्म रूप वृक्ष का यह फल भोगते हुए तुझे संतोष रखकर वसुमित्र से प्रद्वेष का त्याग करना चाहिये, यह सोचकर सुमित्र रात्रि को जंगली जानवरों से डरता हुआ एक विशाल वट वृक्ष की खोल में घुस गया।
इतने में उस वृक्ष पर द्वीपांतर से आये हुए पक्षियों को उनमें के एक बड़े पक्षी के पूछने पर उन्होंने जो बात की, वह सुनी । हे पक्षियों ! बताओ कि- कहां से कौन यहां आया है और द्वीपांतर में किसने क्या-क्या नया देखा वा सुना है ? तब उन्होंने भी वहां जो देखा-सुना था, सो सब उसे कहा । इतने में उनमें से एक इस प्रकार बोला
हे तात ! मैं आज सिंहल द्वीप में से आया हूँ, वहां के राजा के रति को रूप को जीतने वाली मदनरेखा नामक पुत्री है ।