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जिनवचन रुचि पर
सो प्रेमिकी (२३), क्रोध व मान से होय सो द्वेषिकी (२४) और कषाय रहित केवलज्ञानी को केवल काययोग से होने वाले बंधवाली सो ईर्यापथिकी (२५)।
आश्रव तत्त्व कहा, अब संवर तत्त्व कहते हैं
बन्द दरवाजे वाले घर में धूल प्रवेश नहीं करती और तालाब मैं पानी प्रवेश नहीं करता, उसी भांति बन्द किये हुए आश्रव रूपी द्वार वाले जीव में भी पाप मल प्रवेश नहीं करता। अतः अशुभ आश्रय को रोकने का जो हेतु उसे यहां संवर कहा है । वह अनेक प्रकार का है, तथापि यहां वह सत्ताकन भेद माना जाता है ।
बावीस परिषह, पांच समिति, तीन गुप्ति, बारह भावना, पांच चारित्र और दस यति-धर्म इस प्रकार ५७ भेद है।
क्षुधा, पिपासा (तृवा), शीत, घाम, वंश, अल्प वस्त्र, रति, स्त्रियां, चर्या (मुसाफरी), नैषिधिकी (कटासन), दर्भ शय्या, आक्रोश, बध. भिक्षावृत्ति, अलाभ, रोग, तृण स्पर्श, मल, सत्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और सम्यक्तत्र. ये बावीस परीषह हैं। ईया, भाषा, ऐषणा, आदान निक्षेष और उत्सग ये पांच समिति हैं. मन गुप्ति, वचन गुप्ति और काय गुप्ति. ये तीन गुप्तियां हैं।
बारह भावनाओं की भावना करना. वे ये हैं-अनित्य, अशरण, चतुर्गति भव स्वरूप, एकत्व, अन्यत्व, अशुचित्व, आश्रव, संवर, निर्जरा, लोक स्वरूप, जिन धर्म सुष्ठु भाषिता और अति दुर्लभ सम्यत्तव रत्न।
पांच चारित्र ये हैं - सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्म-संपराय और पांचवां यथाख्यात । ___सामायिक सावद्ययोग की विरती को कहते हैं। वह दो प्रकार का है- इत्वर और यावत्कथिक । प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के