________________
जयती श्राविका का दृष्टोत
तीर्थ में प्रथम इत्वर होता है । वह उनके तीर्थ में जिनको अभी ब्रतारोपण न हुआ हो, वैसे शिष्यों को होता है, वह थोड़े समय का है। शेष तीर्थों तथा महाविदेह में यावत्कथिक होता है। - जहां पर्याय काटने में आवे और व्रत में उपस्थापन हो, वह छेदोपस्थापनीय है। ___ वह दो प्रकार का है-निरतिचार और सातिचार । शैक्ष- नव दीक्षित को अथवा तीर्थांतर में संक्रम करते निरतिचार होता है और मूल गुण का भंग करने वाले को सातिचार होता है। वह दो प्रकार का छेदोपस्थापनीय स्थित कल्प में गिना जाता है।
____स्थितास्थितकल्प इस प्रकार है-- अचेलकपन, औद्द शिक, शय्यातरपिंड, राजपिंड, कृतिकर्म, व्रतकल्प, ज्येष्ठकल्प, प्रतिक्रमण, मास-कल्प और पर्युषणा-कल्प, (ये दश कल्प गिने जाते हैं ) उनमें अचेलकल्प, औहशिक कल्प, प्रतिक्रमण, राजपिंड, मासकल्प, और पयुषणाकल्प, ये छः अस्थित कल्प हैं। ___ प्रथम और अंतिम तीर्थंकरों के तीर्थ में अचेल धर्म है, मध्य के तीर्थंकरों के तीर्थ में अचेल तथा सचेल दोनों होते हैं । यहां प्रथम और अंतिम तीर्थंकरों की ओर अमुक एक मुनि को उद्देश करके जो आहार आदि तैयार किया हो, वह अन्य सबको नहीं कल्पता । बीच के तीर्थंकरों की ओर जिसको उद्देश करके किया हो, वह उसीको सिर्फ नहीं कल्पता, दूसरों को कल्पता है. ऐसी मर्यादा है। _____ प्रथम और अंतिम तीर्थंकरों का धर्म प्रतिक्रमण सहित है, नीच के तीर्थंकरों को जब आवश्यकता हो तब प्रतिक्रमण किया जाता है। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के साधुओं को राजा के