________________
जिनवचन रुचि पर
दिये हुए अशन, पान, खादिम, स्वादिम वा वस्त्र, पात्र, कंबल, पविपोंछनक नहीं कल्पते।
प्रथम और अंतिम तीर्थंकरों की ओर स्थित मासकल्प है और बीच के तीथंकरों की ओर अस्थित मासकल्प है और इसी प्रकार पर्युषणा कल्प भी जानना चाहिये । उसमें पर्युषणाकल्प स्थविरों को उत्कृष्ट से चार मास का और जघन्य से ७० दिन का है, उसमें जिनकल्पी को उत्कृष्ट ही होता है।
शय्यातर पिंड, चतुर्याम व्रत, पुरुष ज्येष्ठ कल्प और कृतिकर्म ( वन्दन व्यवहार) करने का कल्प ये बीच के तीथंकरों के बारे में भी स्थित कल्प हैं । शय्यातर मकान का मालिक अथवा उसका आज्ञाकारी होता है, अनेक मालिक हों तो उनमें से एक को शय्यातर मानना । इसी प्रकार उसके आज्ञाकारियों के लिये भी समझ लेना चाहिये। .
मालिक, गृहस्थ और आज्ञाकारी । इसमें एक अनेक की चोभंगी है। मालिक और आज्ञाकारी अनेक हो सो वर्जनीय हैं
और सब अनेक हों तो एक छोड़ना। ___ अन्य स्थान में रहकर अन्तिम आवश्यक दूसरे स्थान में करे तो उन दोनों स्थानों के मालिक शय्यातर गिने जाते हैं, शेष जो सुविहित साधु रात्रि में जागते रहकर प्रातःकाल दूसरे स्थान में आवश्यक करे तो वे शय्यातर नहीं माने जाते, किन्तु जो सोकर दूसरे स्थान में आवश्यक करे तो दोनों शय्यातर माने जाते हैं।
जो मालिक घर देकर फिर सकुटुम्ब व्यापार आदि के कारण उस अथवा अन्य देश में चला जावे तो वह जहां हो वहीं वही शय्यातर माना जाता है।