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जयंती श्राविका का दृष्टांत
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और कर्मों का शुक्लध्यान रूप अग्नि के योग से जो अत्यन्त वियोग होता है सो मोक्ष. वह नौ प्रकार का है।
सत्पदप्ररूपणा, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, अंतर, भाग, भाव और अल्पबहुत्व ये नव प्रकार हैं । मोक्ष यह शुद्ध पद है, अतः वह विद्यमान है । आकाशकुसुम के सदृश अविद्यमान नहीं, उसकी मार्गणादिक से प्ररूपणा की जा सकती है। ___ नरगति, पंचेन्द्रिय, त्रस, भव्य, संज्ञि, यथाख्यात, क्षायिकसम्यक्त्व, अनाहार, केवलज्ञान और केवलदर्शन में मोक्ष है, अन्यस्थिति में नहीं। द्रव्यप्रमाण में अनंत जीवद्रव्य है, क्षेत्रप्रमाण में सर्व सिद्ध लोक के असंख्यातवें भाग में स्थित हैं ।
स्पर्शना क्षेत्र से कुछ अधिक है, काल एकसिद्ध की अपेक्षा से सादि अनन्त है, प्रतिपात का अभाव होने से सिद्धों में अंतरद्वार नहीं । भागद्वार में सर्वजीव के अनन्तवे भाग में सिद्ध है, भावद्वार में उनका ज्ञान-दर्शन क्षायिकभाव में है और जीवत्व पारिणामिकभाव में है।
अल्पबहुत्व द्वार में सबसे थोड़े नपुसक सिद्ध हैं, उससे संख्यात गुणे स्त्री सिद्ध और उससे संख्यात गुणे पुरुष सिद्ध हैं, इस प्रकार संक्षेप से मोक्ष तत्व का वर्णन किया।
आधार में आधेय के उपचार से यहां मोक्ष शब्द से सिद्ध जानना चाहिये । वे पन्द्रह प्रकार का है।
जिन सिद्ध, अजिन सिद्ध, तीर्थ सिद्ध, अतीर्थ सिद्ध. वहां तीर्थ वर्तमान होते जो सिद्ध हुए वे तीर्थ सिद्ध हैं। तीर्थ में प्रवृत्त होने के पहिले ही जातिस्मरणादिक से तत्त्व जानकर जो सिद्ध पद को