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ऋजुव्यवहार लक्षण के यथार्थ भाषण
तब कमल पुत्र बोला कि - तू ज्ञानी के समान बिना संदेह के ऐसा कैसे बोलता है ?
क्योंकि मूर्ख मनुष्य तो मुँह प्राप्त होने से मनमाना कुछ तो भी बकते हैं किन्तु तेरे समान अपने को वश में रखने वाले मनुष्यों ने तो ऐसा कदापि न बोलना चाहिये। सागर बोला कि - हे भाई ! मैं तो भ्रांति बाधा बिना ही यह कहता हूँ, शुद्ध हेतु के समान यह वृथा हो ही नहीं सकता तथा जब हाथ में कंकण हो तब दर्पण की क्या आवश्यकता है, इसलिये इसका निश्चय करना हो तो गाड़ी समीप ही जा रही है।
विमल बोला- ऐसी धृष्टता क्यों बताता है ? सागर बोला कि- तेरे समान धृष्ट के साथ बोलता हूँ, अतः मैं हूँ। 'तब विमल उसके धन पर लुभाकर बोला कि - जो यह बात सत्य होवे तो मेरा जो धन है वह तेरा हो जायगा, अन्यथा तेरा धन मेरा है । तब सागर क्रुद्ध हो हाथ पर हाथ लगा कर कमल को कहने लगा कि - हे सेठ ! हम दोनों की यहां तू साक्षी है।
सेठ बोला कि - हे सागर ! यह तो मूर्ख है, तू भी मूर्ख क्यों बनता है ? इतने में विमल बोला कि - हे पिता ! मेरी लघुता क्यों करते हो ?
सागर बोला कि - हे सेठ ! जो यह तुम्हारा पुत्र मेरे पांव पड़े तो मैं इसे शर्त से मुक्त करू । विमल बोला कि - जब मैं तेरा धन ले लूंगा और तू भीख मांगेगा तब कुरो तेरे पांव लगेंगे।
इस प्रकार लड़ते-लड़ते चलकर गाड़ी से जा मिले, वहां स्त्री को न देखकर विमल प्रसन्न हुआ । उसने गाड़ीवान को पूछा कियहां वह स्त्री क्यों नहीं दिखती है ? तब वह बोला कि - भाई !