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महाशतक श्रावक का दृष्टांत
में और आठ कोटि व्यापार में काम आता था और उसके पास दस-दस सहस्र गायों वाले आठ गोकुल थे ।
उसके रेवती आदि तेरह स्त्रियां थीं, उसमें रेवती को पिता की ओर से आठ कोटि धन मिला था व अस्सीहजार गाये मिली थीं, शेष अन्य स्त्रियों को एक २ कोटि धन और दस २ हजार गायों का एक २ गोकुल पितृगृह से मिला था ।
वहां गुणशील चैत्य में महाबीरजिन का समवसरण हुआ, उनको वन्दन करने के लिये नगरवासियों के साथ महाश तक गया | वह जिनेश्वर को नमन करके उचित स्थान पर बैठ गया. तब भगवान अमृतश्रोत के समान सुन्दर धर्म कहने लगे कि
इस संसार में दुर्लभ गृहिधर्म पाकर श्रावक ने सदैव उसकी विशुद्धि ज्वलंत करने के लिये इस भांति दिनचर्या पालना चाहिये । जैसे कि सोकर उठते ही श्रावक ने प्रथम भली भांति पंच नवकार मंत्र का स्मरण करना, पश्चात् अपनी जाति, कुल, देव, गुरु और धर्म की विचारणा करना ।
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पश्चात् छः प्रकार की आवश्यक करके दिन ऊगने पर स्नानादिक करके श्व ेत वस्त्र पहिर, मुखकोश बांधकर गृह में स्थित प्रतिमा का पूजन करना । पश्चात् प्रत्याख्यान करके जो ऋद्धिवन्त श्रावक हो तो उसने धूमधाम से जिनमंदिर में जाकर वहां शास्त्रोक्त विधि से प्रवेश करना ।
वहाँ जिनपूजा तथा जिनवन्दन करने के अनंतर सुगुरु के समीप जाना वहां उनका विनय संपादन करके प्रत्याख्यान प्रकट करना ( अर्थात् पुनः लेना ) पश्चात् भली भांति वहां धर्म श्रवण करके, घर आकर शुद्ध वृत्ति याने न्यायपूर्वक व्यापार आदि करना, पुनः मध्याह्न काल में जिनेश्वर की पूजा करना ।