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नियम करने पर
वंदना अर्थात् प्रतिमा तथा गुरु का वंदन, आदि शब्द से जिनपूजा लेना चाहिये उनके करने में नित्य उद्यमवंत रहे। नन्द सेठ के समान। नन्द सेठ की कथा इस प्रकार है___ गंधगुलिका जैसे शुभवास और आमोद युक्त होती है, वैसे ही सुखवास (सुख से बसी हुई) और मोदयुक्त ( आनन्द पूर्ण) मथुरापुरी नामक नगरी थी। वहां अति धनाढय और शांत स्वभाव नन्द नामक सेठ था । उसकी नन्दश्री नामक लोभिणी और क्रोधयुक्त स्वभाव वाली स्त्री थी। उनके उदार चित्त और सदेव भक्ति करने वाले चार पुत्र थे। __वहां अतिशय ज्ञानी, क्षमादि गुण की खानि और निष्परिग्रही शिष्य परिवार सहित संगम नामक सूरि पधारे । उनको नमन करने के लिये अनेक नगरवासियों को जाते देख नन्द भी वहां आकर बैठा । तब सूरि इस प्रकार धर्म कहने लगे
पंच महाव्रत पालन रूप यतिधर्म सबसे उत्तम है, किन्तु उसे जो जीव नहीं कर सकते हैं, उन्हें गृहि-धर्म उचित है। यह सुनकर नन्द सेठ प्रसन्न हो गृहि-धर्म अंगीकृत करके अपने को कृतार्थ मानता हुआ अपने घर आया।
पश्चात् एक समय वह गुरु को पूछने लगा कि- हे स्वामिन् ! इस धन से क्या पुण्य हो सकता है ? तब सूरि यह वचन बोलेचतुर जन इस बाह्य, अनित्य, असार, परवश और तुच्छ धन को सात क्षेत्रों में व्यय करके उसमें से अक्षय शिवसुख प्राप्त करते हैं।
यह सुन सेठ प्रसन्न हो गुरु को नमन करके अपने घर आया. पश्चात् उसने अपने द्रव्य से विधि पूर्वक एक सुन्दर जिन-मन्दिर