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चन्द सेठ की कथा
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की धमाधम करके क्यों यों ही मरता है ? तथा पुत्र कहने लगे कि-ले निर्माद बुढ्ढे ! अभी भी तू धर्म की हठ नहीं छोड़ता, इसका क्या कारण है ? हे हताश ! (अभागे) क्या तू हमको जीवित ही नहीं देख सकता? .
सेठ बोला कि-तुम इस प्रकार असार धन के कारण मुक्ति व स्वर्ग के दाता धर्म की निंदा क्यों करते हो ? तब वे बोले कि-हमको मुक्ति और स्वर्ग नहीं चाहिये, हमको तो मात्र धन ही चाहिये, क्योंकि-उससे सर्व अनहोते गुण भी प्रकट होते हैं ।
क्योंकि कहा है कि, “ लक्ष्मी के होने पर अनहोते गुण भी मान्य किये जाते हैं, और लक्ष्मी के चले जाने पर ऐसा जान पड़ता है, मानो सभी गुण उसी के साथ चले गये हैं लक्ष्मी की जय हो"
तथा कहा है कि- जाति, रूप और विद्या गहरी गुफा में जावे, हमारे पास तो केवल धन जमा हो कि-जिससे सब गुण अपने आप ही मान लिये जावेगे। तब सेठ बोला कि-जो तुम धन के अर्थी हो तो भी धर्म का ही पालन करो, क्योंकि यह प्राणीयों को कामधेनु के समान है। ____ क्योंकि कहा है कि-"धर्म धनार्थी को धन देता है, कामार्थी को काम की पूर्ति करता है, सौभाग्यार्थी को सौभाग्य देता है, अधिक क्या ? पुत्रार्थी को पुत्र देता है, राज्यार्थी को राज्य देता है, अधिक विकल्पों का क्या काम है ? थोड़े में कहा जाय तो ऐसी वस्तु ही कौनसी है जो धर्म नहीं दे सकता? तथा वह स्वर्ग और . मोक्ष भी देता ही है।" ___ अन्यत्र भी कहा है कि-धन चाहता हो तो धर्म कर, क्योंकिधर्म से धन होता है और धर्म का चितवन करते जो मर जायगा, तो दोनों में से एक भी प्राप्त न होगा।